१५६ आपके बड़े परम प्रतापी पिता शाहजहाँ ने बत्तीस वर्ष राज्य करके अपना शुभ नाम अपने शुद्ध गुणों से विख्यात किया। "आपके पूर्वज पुरुषों की यह कीर्ति है । उनके विचार ऐसे उदार और महत् थे कि जहाँ उन्होंने चरण रखा, वहाँ विजय-लक्ष्मी को हाथ जोड़े सामने पाया और बहुत-से देश और द्रव्य को अपने अधिकार में किया। किन्तु आपके राज्य में वे देश अब अधिकार से बाहर होते जाते हैं, और जो लक्षण दिखलाई पड़ते हैं, उनसे निश्चय होता है कि दिन-दिन राज्य का क्षय ही होगा । आपकी प्रजा अत्याचार से अति दुखी है, और सब दुर्बल पड़ गये हैं, चारों ओर से बस्तियों के ऊजड़ पड़ जाने की और अनेक प्रकार की दुख की ही बातें सुनने में आती हैं । राजमहल में दरिद्रता छाई हुई है । जब बादशाह और शाहजादों के देश की यह दशा है, तब और रईसों की कौन कहे ? शूरता तो केवल जिह्वा में आ रही है। व्यापारी लोग चारों ओर रोते हैं, मुसलमान अव्यवस्थित हो रहे हैं, हिन्दू महादुखी हैं, यहाँ तक कि प्रजा को सन्ध्या-काल के समय खाने को भी नहीं मिलता और दिन को सब दुख के मारे अपना सिर पीटा करते हैं। “ऐसे बादशाह का राज्य कितने दिन स्थिर रह सकता है जिसने भारी कर से अपनी प्रजा की ऐसी दुर्दशा कर डाली है ? पूर्व पश्चिम तक सब लोग यही कहते हैं कि हिन्दुस्तान का बादशाह हिन्दुओं का ऐसा द्वेषी है कि वह रंक ब्राह्मण से लेकर योगी, बैरागी और सन्यासी तक पर कर लगाता है, और अपने उत्तम तैमूरी वंश को, इन धनहीन और निरुपद्रवी, उदासीन लोगों को दुख देकर कलंकित करता है। अगर आपको उस किताब पर विश्वास है, जिसको आप ईश्वर का वाक्य कहते हैं, तो उसमें देखिये कि ईश्वर को मनुष्य-मात्र का स्वामी लिखा है, केवल मुसलमानों का नहीं। उसके सामने हिन्दू और मुसलमान दोनों समान हैं। मनुष्य-मात्र को उसी ने जीवन-दान दिया है । नाना रंग के मनुष्य अपनी इच्छा से पैदा किये हैं। आपकी मसजिदों में भी उसी का नाम लेकर चिल्लाते हैं, और हिन्दुओं के यहाँ देव-मन्दिरों में भी उसी के निमित्त घण्टा बजाते हैं। किन्तु सब उसी एक को स्मरण करते हैं। इससे किसी जाति को दुख देना परमेश्वर को अप्रसन्न करना है। हम लोग जब कोई चित्र देखते हैं, तो उसके चितेर को
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