१४८ 1 विदा किया। इस बादशाह के पास अपना खास एलची भेजकर भेंट भेजने का बादशाह ने मंसूबा जाहिर किया। यद्यपि उसने शाहजहाँ को बड़ी मुस्तैदी से कैद कर रखा था, और ज़रा भी इसकी तरफ़ से बेखबर न था, पर ऊपर से उससे बहुत अदब और सम्मान का बर्ताव करता था। उसे उन शाही महलों में रहने की आज्ञा दे दी गई थी, जिनमें वह पहले रहा करता था। उसकी पुत्री जहाँ- आरा उसके पास रहती थी। महल की और औरतें भी, जैसे नाचने-गाने- वाली, खाना बनानेवाली भी उसके पास रहती थीं। अब शाहजहाँ को ईश्वर-भक्ति की भी चाट लगी थी। कई मुल्ला भी उसके पास जाकर धर्म-पुस्तकें सुनाया करते थे। घोड़े, बाघ आदि कई प्रकार के शिकारी जानवरों के मँगाने और हिरनों तथा मेंढ़ों की लड़ाई की भी परवानगी मिल गई थी। इस प्रकार वह हर तरह से बूढ़े बादशाह की दिलजोई करता था। वह अधिकता से उसके पास भेंट की चीजें भेजता रहता था, और राजनीति के विषय में उसकी सलाह लेता रहता था। उसके पत्रों से जो वह समय-समय पर लिखता रहता था, श्रद्धा और आज्ञाकारिता टपकती थी। इन बातों से शाहजहाँ का क्रोध ठण्डा पड़ गया, और वह औरंगजेब से पत्र-व्यवहार करने लगा। दाराशिकोह की पुत्री को भी उसके पास भेज दिया गया था। शाहजहाँ ने उन रत्नों को भी स्वयं उसके पास पहुँचा दिया, जिनके विषय में पहले उसने कहा था कि यदि माँगोगे, तो इनको कूटकर चूर-चूर कर दूंगा । अन्त में उसने विद्रोही पुत्र को क्षमा कर दिया और उसके लिये ईश्वर से प्रार्थना करने लगा। परन्तु वास्तव में औरङ्गजेब के मन में चोर तो बना ही था और वह भीतर से चाक-चौबन्द बना रहता था। इसी बीच औरङ्गजेब बीमार पड़ा। उसे बार-बार ज्वर चढ़ता था, और वह बेहोश होजाता था । वैद्य-हकीम निराश हो गये, और दरबार में घबराहट फैल गई। यह अफ़वाह फैल गई कि बादशाह मर गया है। यह भी अफ़वाह ज़ोर कर गई कि महाराज जसवन्तसिंह और महावतखाँ शाहजहाँ को कैद से छुड़ाने की चिन्ता कर रहे हैं। यह घटना घटते ही सुलतान मुअज्जम ने अमीरों को घूस दे-देकर
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