- १४२ नहीं दिया। इसने एक बार जोश में आकर कहा-“तमाम हिंदुस्तान में सिर्फ दो व्यक्ति हैं, जो शराब नहीं पीते-एक मैं, दूसरे काजी अब्दुल- वहाब,” परन्तु सच कहा जाय, तो दोनों ही चुपचाप शराब पीते थे। इसने हुक्म दिया कि तमाम ईसाई डॉक्टर शहर को छोड़कर तोपखाने के वान के पास चले जायें, जो शहर से एक फ़ांग के फ़ासले पर था। वहाँ उन्हें शराब खींचने और पीने की आज्ञा थी, परन्तु अन्यों को बेचने की मनाही थी। फिर इसने कोतवाल को हुक्म दिया कि शराब बेचने वालों का एक-एक हाथ और एक-एक कान काट लिया जाय । कोतवाल यद्यपि पूरा शराबी था, पर वह मुस्तैदी से इस हुक्म की तामील में लग गया। थोड़े ही दिन में शराब-फरोशी बन्द हो गई। परन्तु धीरे-धीरे वह फिर जारी होने लगी, और अमीर लोग चुपचाप शराब खींचने लगे। इसी तरह उसने भंग और अफ़ीम के विरुद्ध भी खूब सख्ती की। इसके लिये खास अफ़सर नियुक्त किया । उसे हुक्म था कि वह इन सब नशों का रिवाज उठा दे । पर यह सख्ती भी धीरे-धीरे कम हो गई। इसके बाद उसने हुक्म दिया कि कोई मुसलमान चार अंगुल से ज्यादा दाढ़ी न रक्खे । इसके लिए एक अफ़सर नियुक्त किया, जो अपने सिपाहियों के साथ लोगों की दाढ़ी नापे, और जिसकी दाढ़ी बड़ी देखे, उसे काट दे, तथा मूछों को काटकर साफ़ कर दे। यह अफ़सर भी बड़ी मुस्तैदी से कैंची-पैमाना लिये फिरा करता था । इस अफ़सर को देखते ही मजा यह होता था कि बहुत-से लोग अपने-अपने मुंह ढाँप लेते थे कि वह उनकी दाढ़ी न काटले। उसने गाने-बजाने के विरुद्ध भी हुक्म दिया कि जहाँ गाने-बजाने की आवाज़ आवे, घुसकर बाजों को तोड़ डालो। इस पर कुछ गवैयों ने मिल- कर एक तरकीब की। जब बादशाह जुमे की नमाज को जा रहा था, तब कोई पाँच हजार आदमी बीस-पच्चीस जनाजे बनाकर खूब रोते-पीटते- चिल्लाते उधर से निकले । बादशाह ने देखकर पूछा-“यह क्या है ?" तब उन्होंने हाज़िर होकर कहा-"हूजू र, मौसीकी मर गई है, उसी का यह जनाजा है।” बादशाह ने हुक्म दिया--"उसे इतना गहरा गाड़ो कि फिर न निकल सके।" 1
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