१२८ ने उधर से भारी आक्रमण किया। एक तीर महावत की आँख में आ लगने से औरंगजेब का हाथी बेकाबू हो गया । वह हाथी से उतरने ही को था कि मीर जुमला ने कहा- "हज़रत, यह दकन नहीं है, क्या गजब करते हैं।" मीर जुमला के रण-कौशल का क्या ठिकाना था। सन्ध्या हो चली थी, लक्षण बुरे थे, पर मीर जुमला ने औरंगजेब को हाथी से न उतरने दिया। - औरंगजेब प्रतिक्षण शत्रु के चंगुल में फंसने की सोच रहा था । उधर शुजा शीघ्र उसे गिरफ्तार करने को हाथी से उतरा। बस, उसकी वही दशा हुई, जो दारा की हुई थी। उसके हाथी को खाली देख सैनिकों ने उसके मरने का सन्देह किया और वे भाग निकले। औरंगजेब की विजय देख, जसवन्तसिंह आगरे लौट आये । वहाँ यह खबर उड़ी कि औरंगजेब और मीर जुमला पकड़े गये, तथा शुजा आगरे की ओर बढ़ रहा है । शाइस्ताखाँ इन बातों से इतना घबराया कि विष पीने लगा, पर स्त्रियों ने प्याला उसके हाथ से छीन लिया। इस बीच में जसवन्तसिंह चेष्टा करते तो शाहजहाँ को कैद से छुड़ा सकते थे, पर वे स्थिति समझ और आगरे में ठहरना ठीक न समझ, मारवाड़ को लौट आये उधर औरंगजेब सोच रहा था कि न जाने आगरे में जसवन्तसिंह ने क्या किया होगा। वह तेज़ी से लौट रहा था। पर उसने सुना-शुजा अब भी इलाहाबाद में पाँव जमा रहा है, उसके पास बहुत धन है, और वहाँ के राजा उसके सहायक हैं। अब औरंगजेब को सिर्फ दो आदमियों पर भरोसा था। एक अपने पुत्र मुहम्मद सुलतान, दूसरे मीर जुमला पर। पर वह दोनों ही से भय खाता और सन्देह करता था। उसने दोनों को दूर करने का उपाय कर लिया। मीर जुमला को बड़ी सेना देकर शुजा पर भेजा और कहा- "बंगाल के ज़रखेज़ सूबे की हुकूमत आप और आपके खानदान में रहेगी, और जब आप शुजा पर फ़तह पा लेंगे, तब अमीरुल-उमरा का सब से बड़ा खिताब भी आपको दिया जायगा।" इसके बाद उसने मुहम्मद सुलतान से कहा-“बेटे, तुम मेरे सब से बड़े पुत्र हो, और अपने ही काम पर जाते हो। तुमने बड़े-बड़े काम किये हैं,
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