पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/१२

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पूर्वी भाग में चावल अधिक खाया जाता है। शेष भारत में गेहूँ, जौ, चना, ज्वार, बाजरा। अधिकांश माँस नहीं खाते। दाल और दूध का चलन अधिक है। धर्मों में सनातनी, बौद्ध, जैन, मुसलमान, ईसाई और सिक्ख प्रधान हैं।

भारतवर्ष में ८ जातियों का मिश्रण है। आर्यों की सब में प्रधानता है, उसी में शक, सीदियन, हूण, कुशान मिल गये हैं। अंग्रेजों के पूर्व सारा भारत कभी एक शासक के आधीन नहीं रहा था। बंगालियों, पंजाबियों, कोशलों, महाराष्ट्रों और मदरासियों में परस्पर इतना अन्तर है कि उन्हें एक जाति नहीं कहा जा सकता। सबमें राजनैतिक और सांस्कृतिक भिन्नता है। इनके इतिहास भी अलग-अलग हैं। प्रान्तों में भी जमीन-आसमान का अन्तर है। परन्तु धार्मिक एक्य सबको मिलाये है। उसी के माध्यम से विचारों का साम्य भी है। विज्ञानेश्वर की मित्ताक्षरा सारे देश में मानी जाती है। कुरुक्षेत्र के द्वैपायन, व्यास, ठेठ दक्षिण के शंकराचार्य, उत्तरीय गौतमबुद्ध और दक्षिणात्य आपस्तम्ब के कथन देश भर में माने जाते रहे हैं। किसी ने इस बात की परवाह नहीं की कि कौन किस देश का वासी था। शेषनाग, काश्मीरी, मम्मट और कान्यकुब्जीय भरत समान भाव से काव्याचार्य माने गये हैं। वेद, ब्राह्मण, सूत्र, स्मृतियाँ और पुराण समभाव से देश में पूजित हैं। इस प्रकार राजनैतिक सम्बन्ध, भाषा और जलवायु यदि अखण्ड भारतवर्ष को पूरी एकता नहीं देते तो सभ्यता और विचार की समता यह काम करती है। उसी पर 'भारतीयता' निर्भर है। परन्तु सांस्कृतिक और लाक्षणिक दृष्टि से भारत में एक विचित्रता है। एक तरफ वह संसार का गुरु है, दूसरी ओर शिष्य। प्राचीन सभ्यता और दार्शनिक के आध्यात्मवाद के कारण वह आज को उन्नत जातियों का गुरु माना जाता है, परन्तु कला-कौशल और व्यापार-विज्ञान में वह पश्चिम का सुयोग्य शिष्य रहा है।

भारतवर्ष के इतिहास का महत्व

भारतीय इतिहास के चार आधार हैं। स्वदेशी साहित्य, विदेशी ग्रन्थ, पाषाण लेख, सिक्के और सम-सामयिक ऐतिहासिक गवेषणाएँ। मोहनजोदड़ो और हड़प्पा से प्राप्त साधन सबसे अधिक बहुमूल्य हैं।