पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/११७

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पदार्थ डालकर बनाई जाती थी। मैंने इसके हरम के कई मनुष्यों को स्वस्थ किया था। इसलिये बहुधा कृतज्ञता प्रकट करने के लिये उस शराब की बोतलें मेरे पास भेज दिया करती थी। इससे मुझे बहुत लाभ होता था। बेगम साहबा रात को उस समय शराब पिया करती थीं, जब गाना बजाना इत्यादि होता था और कभी-कभी इस दशा को पहुँच जाती थी कि वह खड़ी भी नहीं रह सकती थीं। इसलिये उठाकर बिस्तर पर ले जाना पड़ता था। जिस समय बेगम साहबा महल से दरबार को चलती थीं तो बड़ी सज-धज कर और बहुत से सवार और प्यादे तथा ख्व्वाज़ासरा जलूस में लिये चलती थीं। ख्वाज़ासरा जो इसके चारों ओर घेरा डाले होते थे--जिस किसी को सामने खेते, धकेल कर एक तरफ कर देते थे और किसी का कोई मान नहीं रखते। बल्कि चलते हुए हटो बचो के नारे लगाये जाते थे। इसी प्रकार सब शाहज़ादियाँ आतीं और इसीलिये जो इन्हें आते देखता शीघ्रता से रास्ता छोड़ कर एक ओर हो जाता था।

इनकी सवारी बड़ी धीरे-धीरे चलती है। आगे-आगे सक्के सड़कों पर पानी छिड़कते थे जिससे कि धूल न उड़े। शाहज़ादियाँ पालकी में सवार होती हैं, जिसके ऊपर एक बहुमूल्य वस्त्र या सुनहरी जाली होती है जिसमें बहुधा क़ीमती पत्थर और जवाहरात लगे रहते थे। पालकी के गिर्द ख्वाज़ासरा मोर के परों के गुच्छों से मक्खियाँ उड़ाते, जिनके दस्ते जवाहरात से जटित और ऊपर सुनहरी काम होता था। सेवक सुनहरी या रुपहली झण्डे लिये हुए हटो बचो पुकारते थे। पालकी के साथ नाना प्रकार की सुगन्ध रहती है।

यदि मार्ग में कोई अमीर अपने आदमियों सहित मिल जाय तो वह आदर भाव से सड़क से हट और घोड़े से उतर कर दोनों हाथ जोड़े हुए दो सौ कदम के फासले पर खड़ा हो जाता था। इस जगह वह उस समय तक खड़ा रहता जब तक कि शाहज़ादी समीप न आ जाय और फिर उसे बड़ा गहरा सलाम करता।

शाहजहाँ का सबसे बड़ा लड़का दारा था। यह रोबदार, सुन्दर, स्वच्छ दिल, अच्छे आचार, मधुर भाषी, दयालु और निस्सहायों पर दया करने वाला था। परन्तु अपनी धुन का इतना पक्का था कि सदा यह सम-