और नूरजहाँ का भारी ख़जाना औरङ्गजेब के जमाने में मालगुजारी की कमी से खर्च हो गये।
इन ख़जानों में से उच्च अधिकारी असाधारण चोरियाँ भी करते थे। एक बार बादशाह प्रातःकाल बागीचे में घूमने और अपने हाथों से फल तोड़ने लगे। फिदाईखाँ अमीर साथ था। बादशाह उसे फल देता जाता था। महल में जाकर जब बादशाह ने फल माँगे तो उसने कहा--हुजूर मेरे पास फल कहाँ हैं? वह इधर-उधर तलाश करने के बहाने करने लगा। बादशाह ने नाराज होकर कहा--यह तुम मेरे सामने झूँठ बोल रहे हो? इस पर फिदाईखाँ ने कहा--जहाँपनाह। इन मामूली फलों की चोरी भी हुज़ूर ने मुझे नहीं करने दी। परन्तु जहाँपनाह वजीर की चोरियों से किस प्रकार आँखें बन्द किये हैं, जो रोज़ाना तीस हज़ार रुपये जेब में डाल लेता है। बादशाह ने धीरे से कहा--हमको सब मालूम है। मगर मसलहतन चश्मपोशी करनी पड़नी है।
अमरसिंह राठौर की प्रसिद्ध घटना इसी बादशाह के भरे दरबार में हुई। अमरसिंह के मरने पर उनका दर्जा उनके छोटे भाई जसवन्तसिंह को दिया गया। बुन्देलखण्ड के राजा चम्पतराय ने भी इसी बादशाह के जमाने में साठ हजार सेना लेकर विद्रोह खड़ा कर दिया और कर देने से इन्कार कर दिया। कई किले भी लूटकर क़ब्जे में कर लिये। इस पर बादशाह ने स्वयं उस पर चढ़ाई की और मन्त्री सईदुल्लाखाँ की चतुराई से उस पर विजय पा सका। परन्तु काश्मीर पर चढ़ाई करने में असफल रहा।
शाहजहाँ ने अपने केवल चार पुत्र और पुत्रियाँ जीवित रहने दीं और जब कभी उनकी संख्या अधिक होने लगती थी, तो वह अपनी स्त्रियों के हमल गिरवा दिया करता था। यह बुरा कार्य औरङ्गजेब ने भी किया था और इसके उपरान्त उसके लड़कों ने भी। शाहजहाँ की सबसे बड़ी लड़की बड़ी बेगमसाहबो (जहाँआरा) जिसको वह सबसे अधिक प्रेम करता था, बड़ी सुन्दर, चतुर, दाता और दयावाली थी। सब लोग उसे प्रेम की निगाहों से देखते थे और वह बड़ी सज-धज से रहती थी। इस शहजादी को बन्दरगाह सूरत के सिवाय जो इसे पान के खर्च के लिये दे रखा था, और भी वार्षिक तीस लाख रुपये खर्च के लिए मिलते थे। इसके अतिरिक्त इसके