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का हाकिम नियत किया, औरङ्गजेब को मुल्तान और मुराद को गुज़रात का हाकिम बनाया। दारा को दरबार में रहने दिया। औरंगजेब पिता के मन को जानता था--पर ऊपर से मीठा बना रहता था--यह दारा को भी लल्लोचप्पो में ही रखता था और दारा भोला-भाला व सीधा-सादा पुरुष था वह उसकी बातों में आ जाता था। उसे भर्रे पर रख कर औरङ्गजेब ने दक्षिण को अपनी बदली कराली। इस काम में उसका गूढ़ उद्देश्य गोलकुण्डा और बीजापुर की सैनिक शक्तियों का अध्ययन करना था। वहाँ पहुँचते ही उसने नया शहर औरंगाबाद बसाया। बादशाह बहुधा दारा से कहा करता था कि तुम साँप को पाल रहे हो जो तुम्हें अन्त में कष्ट देगा।

यह बादशाह गाने-बजाने का शौक़ीन, काम का प्रेमी और इमारतों के बनाने का बड़ा इच्छुक था। इसे स्त्रियों से भी विशेष रुचि थी, वह अपने महल ही की स्त्रियों पर सन्तुष्ट न था, बल्कि उमराओं की स्त्रियों पर भी हाथ साफ़ करता था। अन्त में यही दोष उसके पतन का कारण बना। उसने ज़फरखाँ की स्त्री के प्रेम में अन्धा होकर ज़फरखाँ को मारने का इरादा कर लिया। पर उसने प्रार्थना की कि उसकी जान बख्श दी जाय और उसे पटने का हाकिम बना कर भेज दिया जाय। यही किया भी गया। इसी प्रकार खलीलउद्दीन के साथ उसने किया। जिसने औरङ्गजेब के युद्ध में दारा से बदला लिया। एक बार किसी ने बादशाह से कहा कि खलीलउद्दीन की स्त्री के पैर में जूता है वह बीस लाख रु० मूल्य का है। बादशाह यह सुन कर क्रुद्ध हो गया और अगले दिन भरे दरबार में ख़लीलउद्दीन से पूछा--

"हम सुनते हैं कि तुम्हारी औरत इस क़दर क़ीमती जूते पहनती है, इससे मालूम होता है तुम्हारे पास बहुत धन है जिसका अधिक भाग चोरी से अवश्य एकत्र किया गया है इसलिये अपना हिसाब हमें समझा दो।"

खलीलुल्लाह चुप ही रहा। इस पर इसका एक दोस्त बोला-"जहाँपनाह, हुक्म हो तो बन्दा इसके जवाब में अर्ज करे।"

बादशाह--"अच्छा कहो।"

दोस्त--"खुदाबन्द, खलीलखाँ की सारी सम्पत्ति इन्हीं जूतों में सुर-