उसने न माना। तब एक दिन बादशाह, जब मलका धूप में टहल रही थी, इस भाँति उसके सामने जा खड़ा हुआ कि उसके सिर की परछाई, मलका के पैरों पर पड़ी। तब बादशाह बोला--अब तो खुश हो जाओ, अब तो तुम्हारे पैरों पर मेरा सिर हाजिर है। इस पर नूरजहाँ प्रसन्न हो गई और इस सुलह की खुशी में मलका ने आठ दिन भारी जल्सा किया जिसमें उसने बाग़ के सब तालाबों और फव्वारों को अर्क गुलाब से भरवा दिया और हुक्म दिया कि कोई इन्हें गन्दा न करे। दैवयोग से एक तालाब के पास ही मलका सो गई। प्रातःकाल उसने तालाब पर चिकनाई तैरती पाई। मलका ने समझा किसी ने गन्दगी डाल दी है, उसने बाँदी को हुक्म दिया, हाथ से देख यह चिकनाई कैसी है? जब उसने देखा तो अति उत्तम सुगन्ध पाई। और तब समझी कि यह गुलाब की चिकनाई ओस की भाँति जम गई है। उसने चिकनाई अपने हाथों में लेकर कपड़ों में मल ली, और दौड़ी हुई बादशाह के कमरे में गई और बादशाह का आलिङ्गन किया। बादशाह सो रहे थे। उठे तो खुशबू से महक उठे। इस भाँति गुलाब का इत्र ईजाद हुआ जो बाजार में १००) तोला बिकने लगा। पीछे जब गुलाब की खेती बढ़ी तो उसका भाव भी कम हो गया।
इस बादशाह ने मुलतान से इलाहाबाद तक शाही सड़कों पर पेड़ लगाने का हुक्म दिया। यह फासला पाँच सौ तेरह फरसंग का था। एक-एक फरसंग पर बुर्ज़ बनाये गये। प्रत्येक बुर्ज़ के निकट एक गाँव होता था जहाँ सब आवश्यक सामग्री मिल सके। इसके सिवा स्थान-स्थान पर सराय, बाग और कुएँ भी बनवाये थे।
इस बादशाह को एक सेनापति महावत खाँ ने जो राजपूत से मुसलमान बना था और बड़ा वीर था, बादशाह की ऐयाशी से क्रुद्ध होकर एक बार अवसर पाकर बादशाह को कैद कर लिया और एक साल तक रखा--और उसे समझाया कि इस भाँति शराब और औरत के फेर में पड़ना बादशाहों के लिये उचित नहीं--फिर सम्मान पूर्वक छोड़ दिया।
जहाँगीर बड़ा दाता था। यदि किसी को कुछ देता तो उसकी तादाद एक लाख से कम न होती थी। इस बादशाह से इनाम पाने के लिये कुछ