पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/९८

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७०
पुस्तक प्रवेश

७० पुस्तक प्रवेश था। वे अपने अलग अलग कवीलों के अनेक देवी देवताओं को मानते थे और उनकी मूर्तियों की पूजा करते थे। उस समय के अनेक यात्रा वृत्तान्तों से साबित है कि ये अरब अत्यन्त सरल स्वभाव और उदार चित्त होते थे, भारतवासियों से उनका मेल जोल और प्रेम खूब बढा हुआ था और भारत में उनकी बस्नियाँ खूब खुशहाल थीं। इसके बाद मोहम्मद साहब के जन्म और इसलाम के प्रचार का समय श्राया । अरबों और खासकर अरब व्यापारियों का भारत आना जाना पहले की तरह जारी रहा । फरक केवल यह हो गया कि पुराने मूर्तिपूजक अरबों की जगह अब निराकार के उपासक नए मुसलमान अरब भारत आने लगे। या वही अरब अब मुसलमान हो गए, उनके साथ साथ अब एक नए मजहब और इसलाम के नए विचारों और नए आदर्शों ने भी भारत में प्रवेश किया । हमे याद रखना चाहिए कि अरब मुसलमानों और उनके साथ इसलाम के इस तरह भारत में प्रवेश करने का किसी सैन्य यात्रा या कोजी हमले से कोई सम्बन्ध न था। पाठवीं सदी का भारत इस स्थान पर धागे बढ़ने से पहले उस समय के भारन की हालत को संक्षेप में बयान कर देना भी आवश्यक है। ईसा की सातवीं सदी के मध्य में सम्राट हर्षवर्धन की सत्ता का अन्त हुया । उत्तर भारत टुकड़े टुकड़े होकर अनेक छोटी छोटी रियासतों में बँट गया । राजपूतों ने पच्छिम से चल कर उत्तर पूरब में और मध्य भारत में अनेक छोटी छोटी रियासते कायम कर ली। अनेक नई जातियां अपने को राजपून कहने लगी। यहाँ तक कि मुसलमानों के आने से ठीक पहले पञ्जाब से दक्खिन तक और बङ्गाल से