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इसलाम और भारत

इसलाम और भारत मर (४) हमें यह याद रखना चाहिए कि इसके बाद महमूद गजनवी के समय तक यानी तीन सौ साल तक फिर न कोई और हमला मुसलमानों का भारत पर हुआ और न सिन्ध या मुलतान से भागे उनका राज बढा । प्राचीन अरब और भारत का सम्बन्ध अब हम उस समय के अरबों और भारतवासियों के परस्पर सम्बन्ध को थोड़े विस्तार के साथ अयान कर देना चाहते हैं। अरबों और भारत- वासियों का सम्बन्ध अरबों के मुसलमान होने से बहुत पहले से यानी हज़रत मोहम्मद के जन्म से कम से कम पांच सौ साल पहले से चला आता था। हज़रत ईसा के जन्म के समय से ही सैकड़ों बल्कि हजारों अरब सौदागर भारत के पच्छिमी और पूर्वी बन्दरगाहों पर श्राकर उतरते थे। खासकर पच्छिम में चाल, कल्याण, सुपारा, और मलबार तट पर अरबों की अनेक बड़ी बड़ी बस्तियों का उस समय के इतिहास में ज़िक्र आता है । हज़रत ईसा के जन्म से पहले ही लंका और दक्खिन भारत मे अरबों और ईरानियों की अनेक बस्तियाँ मौजूद थी। ईरान, अरब, अमरीका और यूरोप के विविध देशों के साथ भारत का उस समय जितना व्यापार था, अधिकतर अरब और ईरानी सौदागरों ही के हाथों में था। रोमन इतिहास लेखक लिखते है कि रोम और यूनान के जो जहाज़ उन दिनों भारत पाते जाते थे उनके भी नाविक अधिकतर अरब ही होते थे। भारत और चीन के बीच की तिजारत का भी एक ख़ासा हिस्सा अरबों ही के हाथों में था, जिसके सबब भारत के पूर्वी तट से भी ये लोग पूरी तरह परिचित थे, और वहाँ भी स्थान स्थान पर इनकी अनेक बस्तियाँ आबाद थीं। उस समय के अरबों का मज़हब एक प्राचीन ढङ्ग का सीधा सा मजहब