ने पुस्तक के लेखक से उस समय अपना विश्वास प्रकट किया था कि यह ज़ब्ती ठहर नहीं सकती।
जुलाई सन् १९३७ में कांग्रेस ने मंत्री पद स्वीकार किया। १० अगस्त को लेखक ने युक्त प्रान्त की सरकार को ज़ब्ती की आज्ञा उठा देने के लिए लिखा। १५ नवम्बर सन् १९३७ को युक्त प्रान्त की सरकार ने २२ मार्च सन् १९२९ वाली ज़ब्ती की आज्ञा को मनसूख़ किया। ८ फरवरी सन् १९३८ को लेखक के लिखने पर मध्य प्रान्त को सरकार ने अपनी २८ मार्च सन् १९२९ की इसी तरह की आज्ञा को मनसूख़ किया। २८ जनवरी सन् १९३८ को बम्बई की सरकार ने लेखक के पत्र के उत्तर में सूचना दी कि चूंकि असली पुस्तक युक्त प्रान्त से प्रकाशित हुई थी और एक प्रान्त की ज़ब्ती की आज्ञा सारे ब्रिटिश भारत में शायद हो जाती है इसलिए अब युक्त प्रान्त से उस आज्ञा के मनसूख़ हो जाने पर बम्बई प्रान्त में पुस्तक के ख़िलाफ़ कोई रोक टोक नहीं है।
युक्त प्रान्त की सरकार की ओर से ज़ब्ती की आज्ञा मनसूख़ हो जाने पर १०,००० प्रतियों का दूसरा संस्करण निकलवाने का प्रबन्ध किया गया। लेखक इस दूसरे संस्करण के प्रकाशक पं० त्रिवेणीनाथ वाजपेयी का आभारी है कि उन्होंने, बावजूद इस बात के कि इस बार छपाई इत्यादि का ख़र्च और ख़ास कर ब्लाक और चित्रों का खर्च पहले से बहुत बढ़ गया है, पुस्तक का मूल्य पहले संस्करण के १६ के मुकाबले में केवल ७ रखा, यानी जितनी सस्ती से सस्ती पुस्तक वे बेच सकते थे, बेचने का