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भारत में अंगरेज़ी राज

भारत में अंगरेजा राज जिस प्रकार हैदराबाद के पहले निजामुलमुल्क ने अपने स्वामी दिल्ली सम्राट के साथ विश्वासघात करके मुगल साम्राज्य के अधःपतन में सहायता दी थी, उसी प्रकार अब अज़ीमुल उमरा ने अपने स्वामी निजाम के साथ विश्वासघात करके हैदराबाद की स्वाधीनता का खात्मा कराया। हिन्दोस्तानी नरेशो के मन्त्रियों को रिशवत देकर अपनी ओर करने की कोशिश करना अंगरेज अफसरो के लिए उन दिनों एक श्राम बात थी। माचिस वेल्सली के सगे भाई आर्थर वेल्सली ने, जो बाद में उयक श्रॉफ वैलिंगटन के नाम से प्रसिद्ध हुआ, २४ अगस्त सन १८०३ को मेजर शा के नाम एक पत्र में लिखा था- "करनान क्लोज के नाम मेरे पत्रों से आपने देखा होगा कि हर बात की ठीक ठोक खबर रखने के लिए मैंने इस बात पर जोर दिया है कि करनल क्लोज पेशवा के मन्त्री को धन दे।" कमान कर्कपैट्रिक को पत्र लिखने के एक सप्ताह बाद १५ जुलाई सन् १७६८ को वेल्सली ने मद्रास के गवरनर को लिखा कि श्राप हैदरावाद के लिए लेना अधिक व्यापक तैयार रखिए । इस पत्र में वेल्सली ने लिखो-- तजवीज़ "मैं चाहता हूँ निज़ाम में कुछ योग्यता और बल फिर से पाजावे।" निस्सन्देह वेल्सली अपने चिर मित्र निजाम से propoved candirons, you will then require the marchofthroop from Forest Ceorve ~ftovernos-GPresale it tter to Captun Kirk Patrick lates 8th July, 1798.