सर जॉन .. 'लाखों' ही का जिक्र है। सर ..... , मन ! की “कलकत्ता रिव्यु" में इस परिह:- "शायद सर जॉन शोर की सान :- क क म अटक यह बात खटकेगी कि अवध के शाम... मी जरा भी तिक नहीं है । मालूम होता है कि अ५ ने चाले के हाथ नीलाम कर दी गई x Ww w सनादतअली को अधिक निचोड़ा - ना . ने अवध की मसनद को अंगरेज़ गवरनर के हाथों की केवल एक बिक्री के ' चीज़ बना दिया।xxx हमें मजबूर होकर अवध के सम्बन्ध के इस तमाम पत्र व्यवहार को सर्वथा निन्दनीय मानना पड़ता है। सन् १७६५ में सर जॉन शोर ने डच लोगों के तमाम भारतीय ___ इलाके उनस लेकर अंगरेज़ कम्पनो के अधीन भारत के खर्च पर . कर लिए । धीरे धीरे लङ्का, मलाका, बन्दा, अन्य देशों की विजय ऐम्वौयना श्रादिक अन्य एशियाई प्रदेशों से भी डच लोग निकाल दिए गए। मारीशस का फ्रांसीसी इलाका और मनिल्ला के उपजाऊ स्पेनिश इलाके अधिकतर भारत ही के धन से ब्रिटिश साम्राज्य में शामिल किए गए। "What will perhaps most sthike the English reader of Sir Johra Shore's treaty 15, the entire omission o the slightest provision for the good Government. of Oudh The peoply seemed as it were sold to the highest budder Sradat Ait was a more promising sponge to squeeze, than his nephew He (Sir John Shore) made the insura of Oudh a merc transferable property in the hands of the British Governor
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सर जॉन शोर