पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/७

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दूसरा संस्करण


इस किताब का पहला संस्करण २००० प्रतियों का १८ मार्च सन् १९२९ को प्रकाशित हुआ था। २२ मार्च सन् १९२९ को युक्त प्रान्त की सरकार ने किताब की ज़ब्ती की आज्ञा दे दी। किसी तरह १७०० किताबें एक बार ग्राहकों के पास पहुँच गई, और ब़ाकी तीन सौ के क़रीब सरकार ने रेल या डाकख़ाने ही में ज़ब्त करलीं। इन १७०० के लिए ग्राहकों के पते लगा लगा कर हिन्दोस्तान भर में सैकड़ों तलाशियां हुई, जिनमें और अनेक पुस्तकें पुलीस के हाथ लग गई। इस ज़ब्ती और तलाशियों के खिलाफ़ देश भर के समाचार पत्रों और प्रमुख सज्जनों ने अपनी आवाज़ उठाई। महात्मा गांधी ने "यंग इंडिया" में इस ज़ब्ती को "दिन दहाड़े डाका" ( Day light robbery ) बताया, और लोगों को सलाह दी कि वह तलाशी के अपमान को सह लें किन्तु अपने पास की पुस्तक अपने हाथों से पुलीस को उठाकर न दें। सेठ जमनालाल बजाज़ ने और अनेक प्रान्तों के अन्दर अनेक देशभक्तों ने ऐसा ही किया। महात्मा गांधी