सर जान शोर हो गया है कि यशोदाबाई एक लड़के को गोद ले, केवल लड़के का पसन्द किया जाना बाकी है। भैलेट को इस पर एतराज़ करने का कोई हक न था। परन्तु नाना का मैलेट को समय से पहले अपनी तजवीज़ बता देना हो एक भयंकर भूल सावित हुई। बाजीराव उस समय कैद मे था । मैलेट को सूचना मिलते ही बाजीराव को ख़बर हो गई । मैलेट, बाजीराव और उसके अन्य साथियों की साजिशो का नतीजा यह हुआ कि नाना की तजवीज़ पूरी होने से पहले ही बाजीराव कैद से निकल आया और नाना की इच्छा के खिलाफ बाजीराव के पक्ष वालो ने उसके पेशवा होने का एलान कर दिया । बाजीराव मसनद पर बैठ गया, और बैठते ही उसने महाराष्ट्र मण्डल के सच्चे हितचिन्तक नाना फड़नवीस के साथ वह शत्रता निकाली, जिसके सबब से नाना को पहले जान बचा कर भागना पड़ा और फिर कई साल कैद में काटने पड़े। बाजीगव कायर और निर्बल साबित हुआ। नाना फड़नवीस की पेशोनगोई उसके विषय में बिलकुल सच्ची निकली। बाजीराव आखिरी पेशवा था और उसके मसनद पर बैठने के साथ ही साथ मराठा साम्राज्य के गौरव का अन्त हो गया। बाजीराव की अयोग्यता से अंगरेजों ने जिस तरह लाभ उठाकर भारत से पेशवा सत्ता का सदा के लिए अन्त कर दिया, उसका बयान एक दूसरे अध्याय में दिया जायगा। निजाम के साथ भी सर जॉन शोर का व्यवहार न्याय य
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सर जॉन शोर