पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/६९६

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भारत में अंगरेज़ी राज

४१२ भारत मे अगरेजी राज बाजीराव का पक्ष लिया । प्रॉण्ट डफ लिखता है कि इस अवसर पर नाना न तुकाजी को पूरी तरह समझाया कि- "बाजीराव की माँ ने शुरू से उसके दिल में तमाम पुराने अनुभवी मराठा नीतिज्ञों के खिलाफ़ द्वेष भर दिया है, वाजीराव के खान्दान का अंगरेजो के साथ जो लम्बन्ध है वह मराठा साम्राज्य के लिए खतरनाक है। इस समय मराठा साम्राज्य के अन्दर खासा ऐक्य है, चारो ओर प्रजा खुशहाल है, और यदि इसी नीति का सावधानी के साथ पालन होता रहा तो भविष्य में बहुत अधिक लाभ की श्राशा की जा सकती है, इत्यादि।" प्रॉण्ट डफ़ लिखता है कि इस तरह समझाने से तुकाजी होलकर और दूसरे सरदार भी नाना के साथ सहमत हो गए । नाना की तजवीज़ थी कि पेशवा माधोराव नारायन की विधवा यशोदाबाई एक पुत्र गोद ले, जिसे सब लोग मिलकर तय करें और वह पुत्र ही पेशवा की मसनद पर बैठे। निस्सन्देह यह तजवीज़ हिन्दोस्तान के रिवाज के अनुकूल और मराठा मण्डल के लिए अत्यन्त हितकर थी। किन्तु दुर्भाग्यवश नाना को सफलता न मिल सकी। नवम्बर सन् १७४५ में रेज़िडेण्ट मैलेट ने नाना से दरयाफ्त किया कि मसनद का उत्तराधिकारी कौन होगा । नाना ने उत्तर दिया कि जब तक राष्ट्र के बड़े बड़े लोग मिलकर फैसला न करें, तब तक विधवा यशोदाबाई मसनद की मालिक समझी जावेगी और फैसला हो जाने पर आपको सूचना दी जावेगी। अपने वादे के अनुसार जनवरी सन् १७६६ मे नाना ने मैलेट को सूचना दी कि यह फैसला