पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/६९

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
४१
वे और हम

वे और हम लिए देशी सिपाहियों का ही बतौर साधनों के उपयोग करता है। इसी स्वेच्छाशासन के नीचे अभी बहुत साल नहीं गुज़रे कि हिन्दोस्तानी सिपाहियों की एक पूरी रेजिमेण्ट को इसलिए जान बूझ कर कन्ल कर डाला गया, क्योंकि उस रेजिमेण्ट के सिपाहियों ने बगैर पहरने के कपड़ों के कूच करने से इनकार कर दिया था। आज दिन तक पुलिस के कर्मचारी धनवान लफङ्गों के साथ मिल कर सरीवों से ज़बरदस्ती धन ऐंठने के लिए सारी कानूनी मशीन को काम मे लाते हैं। आज के दिन तक साहब लोग हाथियों पर बैठ कर निर्धन किसानों की खड़ी फसलों में से जाते हैं और गाँव के लोगों से बिना कीमत दिए रसद वसूल करते हैं। आज के दिन तक यह एक आम बात है कि दूर के ग्रामों में रहने वाले लोग किसी यूरोपियन की शकल देखते ही जगल में भाग जाने हैं।"

  • ' The Anglo-Indians of the last century whom Burke descrnbed

Birds of prey and passage in India.' showed themselves only a shade le cruel than their prototypes of Peru and Mexico Imagine how. biach mu have been their deeds, when even the Directors of the Company admitte That the vast fortunes acquired in the inland trade have been ohtaxned t a scene of the most tyrannxcal and oppressive conduct, that was ever know in any age or country ' Conceive the atrocious state of socrety describe by Vansittart, who tells us that the English compelled the natives to buye sell at just what rates they pleased on pain of flogging or continemes Judge to what a pass things must have come when, in describing a journe Warren Hastings says 'fost of the petty towns and serus were deserted our approach ' A cold-blooded tre aunery was the established policy or ta authorntres Princes wexe betrayed into war with each other and one them having been helped to overcome his antagonist, was then hims