पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/६७

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
३९
वे और हम

वे और हम सर के विचार प्रसिद्ध अंगरेज़ तत्ववेत्ता हरबर्ट स्पेन्सर पिछले करीब सौ साल के इया कम्पनी के भारतीय शासन का सन् १८५३ में सिंहावलोकन क लिखता है- "पिछली सदी में भारत में रहने वाले अंगरेज, जिन्हें बर्क ने 'भारत में शिकार की ग़रज़ से जाने वाले फसली परिन्दे' बतलाया है, अपने मुकाबले के पेरू और मेक्सिको निवासी यूरोपियनों से कुछ ही कम जालिम साबित हुए । कल्पना कीजिए कि उनके कृत्य कितने कलुषित रहे होंगे, जब कि कम्पनी के डाइरेक्टरों तक ने यह स्वीकार किया कि भारत के आन्तरिक व्यापार में जो बड़ी बड़ी पूंजियां कमाई गई हैं वे इतने ज़बरदस्त अन्यायों और अत्याचारों द्वारा प्राप्त की गई हैं, जिनसे बढ कर अन्याय और अत्याचार कभी किसी देश या किसी ज़माने में भी सुनने में नहीं पाए।' अनुमान कीजिए कि वन्सीटॉर्ट ने समाज की जिस दशा को बयान किया है वह कितनी बीभत्स रही होगी, जब कि वन्सीटॉर्ट हमें बतलाता है कि अंगरेज़ भारतवासियों को विवश करके जिस भाव चाहते थे, उनसे माल खरीदते थे और जिस भाव चाहते थे उनके हाथ बेचते थे, और जो कोई इनकार करता any aver before discovered , such as the world bas nothing simals s"~-The English in India~-System of Territorial acqussttorn izam Howst: जिन्हो ने वहा के लाखो श्रादिमनिवासियो को अंग भंग कर र उनका शिकार खेल खेल कर उन्हें निर्मूल कर दिया-लेखक ।