भारत में अंगरेजी राज कॉर्नवालिस ने उन फलों को बिना हाथ लगाए लौटा दिया। टीपू के दूत से उसने सुलह की बातचीत करने तक से इनकार कर दिया। इतिहास लेखक मिल लिखता है कि लूट के लोभ और यश की इच्छा ने इस समय अंगरेजी सेना को अन्धा कर रखा था और वह मैसूर निवासियों के साथ उस अमानुषिक व्यवहार पर कटिबद्ध थी, जिसका कोई सभ्य कौम अपने बुरे से बुरे शत्रु के साथ विचार तक नही कर सकती !* टोधू ने अपनी शक्ति भर युद्ध जारी रक्खा। साथ ही उसने फिर कॉर्नवालिस के साथ सुलह की बातचीत मीडोज़ की हार करने की कोशिश की। वह अपनी उस समय की अवस्था खूब समझ रहा था। किन्तु कॉर्नवालिस ने इस बार टीपू के दूत को अपने सामने तक आने न दिया। आखिरकार श्रीरंगपट्टन का मोहासरा शुरू हुआ । टीपू ने फिर अंगरेजों और मराठों दोनों से सुलह को बातचीत शुरू की। इस बीच जनरल मीडोज़ ने कॉर्नवालिस की इजाजत से सोमरपीठ के प्रसिद्ध बुर्ज पर हमला किया। सोमरपीठ उस समय श्रीरंगपट्टन के किले की नाक' कहलाता था। सय्यद गफ्फार इस मोरचे का रक्षक था। सय्यद गफ्फार ने खूब वीरता के साथ जनरल मीडोज़ का मुकाबला
- ". the fact is, that the English in India, at that time, had
been worked up into a mixture of fury and rage against Tipoo more resembling the passion of savages against their enemy, . . than the feelings with which a civilized natron regards the worst of its foes "-Mill, vol v, p 278