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भारत में अंगरेज़ी राज

३७४ भारत में अंगरेजी राज निजाम के बूते का काम नहीं है। यह खबर पाते ही कि टीपू और मराठों में सुलह हो रही है, कॉर्नवालिस ने फौरन २३ अक्तबर सन् १७०७ को अपने एक अफसर जॉर्ज फ़ॉर्सटर को लिखा कि श्राप मूदाजी भोसले के पास नागपुर पहुँच कर गुप्त रीति से वहाँ के सैन्धवल इत्यादि का पता लगावें और भूदाजी और उसके साथियों को टीपू के खिलाफ अंगरेजों की ओर फोड़ने का यल करें। इसी पत्र में कॉर्नवालिस ने लिखा कि-"यदि मराठों ने टीपू के साथ सुलह कर ली है या सुलह करने का फैसला कर लिया है तो यह नामुमकिन है कि हमारे समझाने बुझाने से मराठे फौरन ही अपने उस फैसले से टल जावेxxx इसलिए आप इसमें कोई कोशिश उठा न रखिए xxx कि टीपू को दोनों का दुश्मन दिखा कर और मराठों को उकसाकर टीपू के खिलाफ मराठों के साथ गहा सम्बन्ध और मेल कर लिया जावे।"* ___इसी मज़मून का एक पत्र कॉर्नवालिस ने १० मार्च सन् १९८८ को पूना के अंगरेज़ रैजिडेण्ट मैलंट को लिखा, जिसमें मैलेट से पेशवा दरवार को टीपू के विरुद्ध फोड़ने के लिए कहा गया। पेशवा दरवार और निजाम दोनों से कॉर्नवालिस ने यह वादा किया कि यदि आप लोग टीपू के विरुद्ध अंगरेजो को युद्ध में मदद देगे तो V In tus Atten to titolgo Former dated October 23, 1787, Lord Corn- wallts wrote .... f thuMastratirs have engaged o ccelved to keey peace with Tipoo, 11 191ot prohtole that our holicitations wordd tuduce turn to depart immediately from that plan " Forster was therefore instincted to spate to pauns to incite Marliates "toforn netose conncuon and alliance against Tipoo as a comyr on enemy'