भारत में अंगरेजी राज सरकार का समय इन वेतुके और बदमाशी के झगड़ों में नष्ट करोगे तो यकीन रखो तुम्हारे सर कुचल दिए जावेंगे।" हैदरअली का इन्साफ़ उस समय दूर दूर तक मशहूर था। उसके जीवन चरित्र का एक मान्सीसी रचयिता का लिखता है कि उसकी प्रजा में किसी भी निर्धन से निर्धन पुरुष या स्त्री को अधिकार था कि हैदर के सामने श्राकर अपनी दाद फरियाद पेश करे। पहरेदारों को हुकुम था कि किसी फ़रियादी को किसी समय भी हुज़र में श्राने ले न रोका जावे। वह बड़े गौर से सब की फरियाद सुनता था और सब का इन्साफ़ करता था। एक बार सन् १७६७ ईसवी में जब कि हैदरअली कोयम्बतुर में था, एक दिन शाम को वह हवा खोरी के लिए जा रहा था। मार्ग में एक बुढ़िया सड़क के एक ओर आकर लेट गई और "इन्साफ़ ! इन्साफ़ !" चिल्लाने लगी। हैदर अली ने फौरन अपनी सवारी रोक दी, बुढ़िया को पास बुलाया और पूछा--"क्या मामला है ?” बुढ़िया ने जवाब दिया-“जहाँ पनाह ! मेरे केवल एक बेटी थी,श्रागा मोहम्मद उसे भगा लेगया।" सुलतान ने जवाब दिया--"श्रागा मोहम्म्द को यहाँ से गए एक महीने से ज़्यादा हो गया, तुमने आज तक शिकायत क्यों नहीं को?" जवाब मिला-"जहाँपनाह ! मैंने कई बार अर्जियाँ लिखकर हैदरशा के हाथों में दी, किन्तु मुझे कोई जवाब नहीं मिला।" हैदरशा हैद्रअली का ख़ास जमादार था जो उस समय हैदरअली के आगे आगे चल रहा था । अागा मोहम्मद उससे पहले का खास
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भारत में अंगरेज़ी राज