३५१ मैसूर के अंदर अपनी नई सत्ता को मजबूत करने की ओर भी उसे काफ़ी ध्यान देना पड़ा। फिर भी उसने पहले युद्ध का अत बड़ी सफलता के साथ युद्ध जारी रखा और अंगरेजी सेना को शिकस्त पर शिकस्त दी। यहाँ तक कि अंगरेजो को चारों ओर "निर्बलता, निरुत्साह और नैराश्य" के सिवा कुछ दिखाई न देता था। अन्त में सन् १७८३ में अंगरेजों ने बड़ी नन्नता के साथ टीपू से सुलह की प्रार्थना की। टीपू उनकी बातों में श्रा गया। ११ मार्च सन् १७८४ को मङ्गलोर में टीपू सुलतान और अंगरेज कम्पनी के बीच सन्धि होगई। अंगरेजो ने वादा किया कि हम फिर कभी मैसूर के मामलों में दखल न देंगे, टीपू और उसके उत्तराधिकारियों के साथ सदा मित्रता का व्यवहार रक्खेंगे और उनके शत्रुओं के विरुद्ध सदा उन्हें सहायता देने के लिए तैयार रहेंगे। इस वादे पर वीर, उदार, किन्तु नातजरवेकार टीपू ने अंगरेजों से जीता हुआ तमाम इलाका उन्हें लौटा दिया। टीपू ने निस्सन्देह एशियाई मर्यादा के अनुसार अपनी शाहाना श्रान कायम रक्खी और अंगरेजों को काफी नीचा दिखाया, किन्तु जो बात हैदर और नाना चाहते थे वह पूरी न होसकी। हैदरअली एक गरीब घर में पैदा हुआ था और एक मामूली सिपाही से बढ़ते बढ़ते केवल अपनी वीरता और हैदरअली योग्यता के बल एक विशाल राज का स्वामी बन गया । हैदरअली 'सुलतान हैदरअली शाह' का बल
- • Debility, deraction and despast "--Mill vol 1
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