हैदरअली ३४६ नाना फड़नवीस की समस्त आशाओं का आधार केवल वीर हैदर अली था । यदि हैदरअली एक बार मद्रास प्रान्त से अंगरेजों को निकाल सकता तो निस्सन्देह नाना फड़नवीन मराठा मण्डल को मजबूत करके उत्तर में अंगरेजों के साथ फिर से युद्ध शुरू कर देता। उत्तरी भारत में अंगरेज अपने अनेक दुशमन पैदा कर चुके थे और इस हालत में नाना को सफलता प्राप्त होने की भी बहुत बड़ी सम्भावना थी। किन्तु मालूम होता है कि भारतवालियो के अनेक पापों के प्रायश्चित और सच्ची भारतीय प्रात्मा के विकास के लिए अभी इस देश का विदेशी शासन के अग्नि स्नान में से निकलना श्रावश्यक था। ठीक उस समय जब कि बीर हैदरअली इलाकों पर इलाके और गढ़ों पर गढ़ विजय करता हुआ वढ़ा चला जा रहा था, जब कि भारत के अन्दर स्वतन्त्रता और परतन्त्रता के इस बन्द को एशिया और यूरोप की समस्त जागरूक शक्तियाँ ध्यान से देख रही थीं, जब कि हैदरअलो का नाम सुनकर भारत के अंगरेज़ चौक पड़ते थे और इंगलिस्तान में कम्पनी के हिस्सों की दर धड़ाधड़ गिर रही थी, अचानक छ दिसम्बर सन् १७८२ की रात को अरकाट के किले में हैदरअलो की मृत्यु हो गई । हैदरअली की मृत्यु ने नाना फड़नवीस की आसानों को चूर चूर कर दिया और लाचार होकर उसने सालबाई को मन्धि पर दस्तखत कर दिए । अंगरेजों के लिए हैदरअली को मृत्यु वास्तव में एक बहुत बड़ी बरकत साबित हुई। भारनी की विजय के बाद हैदरअलो की कमर में एक फोड़ा निकला, जिसके कारण उसे अरकाट लौट आना पड़ा। यह फोड़ा.
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हैदरअली