पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/६२३

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
३४३
हैदरअली

हदरअली ३४३ बढते हुए देख कर जनरल मनगे का साहस टूट गया। उसे हैदर के मुकाबले को हिम्मत न हो सकी। उसने अपनी तो और तमाम भारी सामान गञ्जी के एक बड़े भारी तालाब में फेंक दिया और स्वयं अपनी सेना सहित पीछे हटकर मद्रास में पनाह ली। हैदर ने पहले गजी में पड़ाव किया, आसपास के कुछ किलों को फ़तह किया और फिर उस तमाम इलाके के शासन और रक्षा का उचित प्रबन्ध कर पीछे लौटकर राजधानी अरकाट का मोहासरा शुरू कर दिया। तीन महीने तक अरकाट का मोहासरा जारी रहा। इल मोहालरे में दोनों ओर काफी जान गई। हैदर का दामाद सय्यद हाफिज़ अली खां भी अरकाट ही के मैदान में काम आया। अन्त में हैदरअली की सेना ने अरकाट के किले और नगर दोनों पर कब्जा कर लिया। विजय के सवेरे हैदरअली ने अरकाट के बाजारों और गलियों में एलान करवा दिया कि नगर निवासियों के हैदरअली की जान माल पर कोई किसी तरह का हमला न उदारता करे, कोई किसी गरोब को किसी तरह का कष्ट न दे और मैसूर की सेना का कोई सिपाही न किसी के धन को हाथ लगा और न किसी स्त्री की ओर आँख उठाकर देखे। अरकाट के बचे हुए अंगरेज़ों को उसने अपनी गारद के साथ हिफाज़त से मद्रास भिजवा दिया। अपने एक आदमी मीर सादिक

  • Colonel W Miles' History of Hydes , p 395