पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/६२

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पुस्तक प्रवेश

पुस्तक प्रवेश मशहूर है उसमें कम से कम १०० साल तक इंगलिस्तान और देशों से भी अधिक गहरे अंधेरे में डूबा रहा। सारांश यह कि पाप पुण्य, या धर्म अधर्म के इस तरह के नैतिक आदर्श जो प्राचीन वैदिक मत, बौद्ध मत, जैन मत इत्यादि के कारण भारत में हजारों साल से स्थिर हो चुके थे और जो हर भारतवासी की पैतृक मानसिक सम्पत्ति थे, उस समय तक कभी भी इंगलिस्तान में स्थिर होने न पाये थे। इसके अलावा ३८ वीं सदी के शुरू तक इंगलिस्तान के जन सामान्य न केवल भयंकर दरिद्रता ही में डूबे हुए थे, वरन् थोड़े से रईसों और ज़मी- दारों को छोड़कर १० फीसदी इंगलिस्तान निवासियों की हालत अनेक बातों में ज़रखरीद गुलामों की हालत से बेहतर न थी। जिस पार्लिमेण्टरी शासन पद्धति की इतनी अधिक डीग हाँकी जाती है, उसका जन्म भी इस श्रापसी कलह और द्वेष ही में हुआ था, जिसके लिये सुसभ्य, सुसंगठित, खुशहाल भारत में कभी कोई गुमाइश ही न थी। सुसंगठित ग्राम-पंचायतों के रूप में ग्रामवासियों के सच्चे स्वराज्य या ग्रामतन्त्र का इंगलिस्तान निवासियों को कभी अनुमान तक न हो सकता था । न राजा और प्रजा के बीच वह सुन्दर धार्मिक सम्बन्ध वहाँ कभी कायम हो पाया था जो, हिन्दुओं और मुसलमानों, दोनों के शासनकाल में भारत में कम से कम दो हज़ार साल से ऊपर तक कायम रहा । इन सब बातों को हम आगे चल कर अधिक विस्तार के साथ बयान करेंगे। सच यह है कि इस तरह के नैतिक आदर्श केवल सदियों के सुसभ्य