हैदरअली भारत को विदेशी तिजारत का एक जबरदस्त केन्द्र था। दूर दूर के व्यापारी वहाँ पर जमा होते थे और करोड़ों रुपए का माल महमूद बन्दर को मण्डियों में भरा रहता था। अंगरेज़ी सेना महमूद वन्दर की रक्षा के लिए मौजूद थी। करीम साहब ने सेना सहित महमूद बन्दर पर हमला करके उस अंगरेजी सेना से विजय किया। किले और नगर पर कब्जा कर लिया और वहाँ से करोड़ों का माल लाकर अपने बाप के साममें पेश किया। इसी तरह की अनेक विजय टीपू और दूसरे सेनापतियों ने की। यहाँ तक कि स्वयं हैदरअली की सेना बढ़ते बढ़ते करनाटक की राजधानी अरकाट के निकट जा पहुँची और नवाब मोहम्मद अली को भाग कर मद्रास में पनाह लेनी पड़ी। १० अगस्त सन् १७७० को हैदर के कुछ सवार बढ़ते बढ़ते मद्रास के निकट फिर सेण्ट टॉमस की पहाड़ी हैदरअली फिर एर जा पहुँचे। हैदर को मुख्य सेना अभी तक करनाटक की राजधानी के आसपास थी, तब भी मद्रास फिर खतरे में था। दो बड़ो सेनाएँ हैदर को परास्त करने के लिए तैयार की गई। इनमें पहली जनरल मनरो के अधीन मद्रास से रवाना हुई और दूसरी करनल बेली के अधीन गुण्ट्रर से राजधानी अरकाट की ओर चली। इनके अलावा तीन नई सेनाएँ गुण्टूर, पुद्दुचरी और विचन्नपल्ली में तैयार की गई। हैदर ने सबसे पहले टीपू को करनल बेली के मुकाबले के लिए गुण्टर की ओर रवाना किया। मार्ग में १० सितम्बर सन् १७८०
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हैदरअली