भारत में अंगरेजी राज नवाब मोहम्मदअली अंगरेजों के खास मददगारों में से था। हैदरअली का अंगरेजी के बहकाने से मोहम्मदअली ने हैदर करनाटक विजय अली के साथ सन्धि के पालन करने से इनकार करना कर दिया। करनाटक के मामले में अंगरेज बराबर दखल देते रहते थे, जिसकी वजह से करनाटक की प्रजा अत्यन्त दुखी और असन्तुष्ट थी। हैदरअली अपनी सेना सहित जुलाई सन् १७८० में सब से पहले करनाटक की ओर बढ़ा। करनाटक के किलों की रक्षा के लिए जगह जगह कम्पनी की सेनाएँ नियुक्त थीं। यह सब सेनाएँ करनल कॉस्बो के अधीन थीं। हैदरअली ने पहले की तरह अपनी सेना के कई हिस्से किए और एक हिस्सा अपने अधीन, दूसरा अपने बड़े बेटे टीयू के, तीसरा टीपू के छोटे भाई करीम साहब के और वाकी छोटे बड़े दस्ते अन्य योग्य हिन्दू और मुसलमान सेनापतियों के अधीन करनाटक के अनेक किलों को विजय करने के लिए अलग अलग दिशाओं मैं रवाना कर दिए । करनाटक की दुखी प्रजा ने बड़े हर्ष के साथ हर जगह हैदर का स्वागत किया। करनल कॉस्बी और नवाब मोहम्मदलो को सेनाओं से जगह जगह हैदर की लड़ाइयाँ हुई, जिनमें अंगरेजों को हार पर हार खानी पड़ी। नवाब मोहम्मदअलो और उसके अंगरेज़ माथी हैदर की बढ़ती हुई बाढ़ को न रोक सके । किले पर किला और इलाके पर इलाका हैदर के हाथों में प्राता चला गया। इनमें एक मुख्य महमूद बन्दर का किला था जिसे अब पोटो नोवो कहते हैं। महमूद बन्दर उन दिनों
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भारत में अंगरेज़ी राज