हैदरअली सीमा न थी। हैदर यदि चाहता तो उसी दम बड़ी आसानी से मद्रास पर कब्जा कर सकता था और कम से कम दक्खिन भारत से अंगरेजों के रहे सहे प्रभाव का खात्मा कर सकता था। किन्तु उसने कप्तान बेक के साथ वादा कर लिया था कि मद्रास के फाटक पर आकर मैं सुलह की बातचीत सुन लूंगा। पूर्वीय मर्यादा के अनुसार उसने अपने वचन का पालन किया । उलने मद्रास के अंगरेज़ गवरनर को अपने पहुँचने की सूचना दी। गवरनर ने तुरन्त इमे और बौशियर दो अंगरेज अफसरों को सुलतान हैदरअली से सुलह करने के लिए भेजा । इन दोनों अंगरेजों में डूत्रे आइन्दा के लिए मद्रास का गवरनर नियुक्त हो चुका था और बौशियर उस समय के गवरनर का सगा भाई था। हैदर ने बड़े श्रादर के साथ अंगरेज दूतों का स्वागत किया और उनकी प्रार्थना के अनुसार सेण्ट टॉमस की पहाड़ी पर अपना खेमा लगवाया । सुलह की शर्ते लिखी जाने लगी । हैदरअली की उस समय की स्थिति को बयान करते हुए अंगरेज़ इतिहास लेखक करनल मालेसन लिखता है :- "वास्तव में हैदर उस समय सारी स्थिति पर हावी था! मदास का देशी नगर और अंगरेजों के मकान सब उसकी दया पर थे। उसके आने से अब के ऊपर इतना प्रातक छा गया था कि मदास का किला भी उसके हाथों में आ जाता । उसकी स्थिति इस समय ऐसी थी कि वह जो शर्ते चाहता, अंगरेजों से मंजूर करा सकता था और वास्तव में उसने ऐसा ही किया भी।"
- "Hvder, antact, was master of the situation
The native town and