३३२ भारत में अंगरेजी राज जाना "मैं मद्रास के फाटक पर पा रहा हूँ और गवरनर और उसकी कौन्सिल को जो कुछ कहना होगा वहीं आकर सुनूंगा।" कप्तान ब्रूक निराश होकर मद्रास लौट आया। हैदर ने अपना तमाम भारी सामान और माल असबाब मैसूर भेज अंगरेजों का दिया और खुद सेना सहित मद्रास की ओर भयभीत हो बढ़ा। हैदर की तमाम सैन्य यात्राएँ अत्यन्त आश्चर्यजनक होती थीं। विशाल सेनाओं सहित पूरब से पच्छिम और पच्छिम से पूरब सैकड़ों मील की यात्राएँ चन्द दिनों के अन्दर तय करना और फिर बिना आगम किए 'घबराई हुई अँगरेजी सेना पर जा टूटना उसके लिए एक मामूली बात थी। इस बार साढ़े तीन दिन के अन्दर उत्सने १३० मील का फासला तय किया और एक दिन अचानक मद्रास के किले से दस मील की दूरी पर दिखाई दिया । अंगरेज़ भय से काँप उठे। हैदर की संना और मद्रास के बीचों बीच सेण्ट टॉमस की पहाड़ी थी। यह वही जगह थी जिस पर टीपू एक बार कब्जा कर चुका था। अंगरेजों ने अब बड़ी फुरती के साथ इस पहाड़ी की रक्षा का इन्तज़ाम किया और वहाँ पर अपनी सेना जमा की, ताकि हैदर आसानी से मद्रास तक न पहुंचने पावे। किन्तु अंगरेजी सेना अभी सेण्ट टॉमस पर जमने भी न पाई थी कि हैदर अपनी विशाल सेना सहित दूर का चक्कर देकर मद्रास किले के दूसरी ओर के फाटक पर आ पहुँचा । अंगरेजी सेना किले के दूसरी ओर फसील से दो तीन मील के फासले पर थी। अंगरेजों के भय की उस समय कोई
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भारत में अंगरेज़ी राज