२२४ भारत में अंगरेजीराज और इलके अलावा पालकी के आगे आगे दो सौ स्त्रियाँ बुरके पहने हुए घोड़ों पर सवार थीं। कहा जाता है कि माँ के खेमे में उतरते ही हैदर ने हैरान होकर पूछा-"आप इतना कष्ट उठाकर इस समय यहाँ कैसे आई ?" बूढ़ी माँ ने उत्तर दिया--"बेटा, मैं यह देखना चाहती थी कि तुम अपनी पराजय को कितने धैर्य के साथ सह सकते हो।" हैदर ने जवाब में अपनी हिम्मत दिखलाते हुए माँ को विश्वास दिलाया कि वह पराजय कोई पराजय ही न थी। इस पर माँ ने उत्तर दिया-"खूब, बहुत खूब, अगर यही बात है तो खुदा का शुक्र है और मैं फौरन लौट जाऊँगी, ताकि मेरे रहने से तुम्हारे काम में रुकावट न पड़े।" अपने पहुँचने के ठीक तीसरे रोज़ हैदर को बूढ़ी माँ बेटे को दुआ देकर हैदरनगर की ओर लौट गई। निस्सन्देह इस प्रकार की वीर माता ही हैदर जैसे वीर पुत्र को जन्म दे सकती थी। टीपू मद्रास के किले से केवल एक कोस की दूरी पर था। उस समय के उल्लेखों से जाहिर है कि टीपू के लिए टापू के साथ छल उस समय मद्रास विजय कर सकना कुछ भी मुश्किल न था। जनरल स्मिथ ने त्रिनमल्ली की विजय के बाद टीपू को पीछे हटाने की एक खासी सुन्दर बाल चली । उसने एक साँडनी सवार फौरन मद्रास की ओर भेजा। इस सवार ने टीयू की सेना में पहुँच कर यह जाहिर किया कि मुझे सुलतान हैदरअली ने अपने बेटे की खबर लेने के लिए भेजा है। टीपू को उसने त्रिनमल्ली की पराजय की ख़बर दी और कहा कि सुलतान का हुकुम
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भारत में अंगरेज़ी राज