म हैदरअली ३०४ गुलबर्गा में दक्खिन के मशहूर मुसलमान सन्त हज़रत बन्दा नवाज़ गेसूदराज़ की दरगाह में रहा करता था। वली मोहम्मद के खर्च के लिए दगाह से एक छोटी सी माहवारी रकम बँधी हुई थी। प्राचीन भारतीय ऋषियों के समान उस समय के अनेक मुसलमान फ़क़ीर अत्यन्त सरल, किन्तु कौटुम्बिक जीवन व्यतीत किया करते थे। वली मोहम्मद के एक बेटा था, जिसका नाम शेख मोहम्मद अली था। उसे शेख अली भी कहते थे । शेख अली अपने वाप के समान पहुँचा हुआ फ़कीर माना जाता था। वह कुछ दिन वीजापुर में रहा, फिर करनाटक के कोलार स्थान में आकर ठहरा । कोलार का हाकिम शाह मोहम्मद दक्खिनी शेख अली का बड़ा भक्त था। शेख अली के चार बेटे थे। खर्च की तङ्गी के लबब बेटों ने बाप से प्रार्थना की कि हमें इजाजत दीजिये कि हम कहीं और जाकर नौकरी कर लें, धन और इज़्ज़त हासिल करें। किन्तु शेख अली ने बेटों को समझाया :- "हमारे बाप दादा खुदातर्स और परहेज़गार लोग थे । वे इस काचिन्न थे कि दुनिया में नाम हासिल करते, फिर भी दुनिया के अन्धनों और उसके संसर्ग से वे अपने को सदा अलग रखने की कोशिश करते रहे; क्योंकि दुनिया की लालला से रूहानी शान्ति जाती रहती है और सच्चे सुख की खोज का शौक मिट जाता है, इसलिए तुम्हें उचित है कि अपने पूर्वजों के कदम ब कदम चलो और इस चन्दरोज़ा हस्ती के फन्दों में न आयो xxx इसके अलावा मनस्वी और आज़ाद तबीयत के लोग अपनी सांसारिक हालत के तङ्ग होने से कभी दुखी नहीं होते और यदि उनके
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