पहला मराठा युद्ध ३०५ सुलह करवा दें। किन्तु भूदाजी नाना के साथ विश्वासघात कर अंगरेजों की ओर चुका था, उसे फिर नाना के सामने जाने का से सन्धि को साहस न हो सका। मजबूर होकर हेस्टिंग्स ने १३ अकबर सन् १७१ को फिर माधोजो सींधिया के साथ एक गुप्त सन्धि की और उसी माधोजी द्वारा नाना फड़नवीस से सन्धि की बातचीत शुरू की। ११ सितम्बर सन् १७८१ को मद्रास की अंगरेज़ कौन्सिल ने भी हैदर से हार पर हार खाकर एक पत्र द्वारा बड़ी नम्रता के साथ नाना से सुलह की प्रार्थना की, जिसमें उन्होंने खुदा और ईसा मसीह के अलावा इंगलिस्तान के बादशाह, अंगरेज़ कौम और कम्पनी तीनों की कसमें खाई कि हम लोग अब जो सन्धि होगी उस पर सदा कायम रहेंगे। कई महीने तक पत्र व्यवहार जारी रहा। अन्त में १७ मई सन् १७८२ को सालबाई नामक स्थान पर पूना सालखाई को दरबार और कम्पनी के बीच तीसरी बार सन्धि सन्धि हुई । इस सन्धि के अनुसार- १-शुरू से अब तक छल से या बल से पेशवा के जितने इलाकों पर अंगरेजों ने कब्जा कर लिया था वे सब पेशवा दरबार को वापस दे दिए गए। २-गायकवाड़ के इलाकों और तमाम गुजरात की ठीक वही स्थिति रहो, जो सन् १७७५ से यानी अंगरेजों के दखल देने से पहले थी। २० .
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