पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/५६७

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पहला मराठा युध्द

पहला मराठा युद्ध २६१ शुरू किया। उन्होंने स्वयं अपने बहुत से गोले बाबद को आग लगा दी और भारी तोपों को एक बड़े तालाब अंगरेजों की दोबारा दिया मराठा सेनापतियों ने अब आगे हार और दूसरी सन्धि बढ़कर सामने से शत्रु को रोका और उन्हे चारों ओर से घेर लिया। एक भयङ्कर संग्राम हुश्रा। अंगरेजी सेना को दूसरी बार पूरी तरह हार खानी पड़ी। उनके तमाम अस्त्र शस्त्र छीन लिए गए। पेशवा की सेना उस समय यदि चाहती तो राधोया और उसके एक एक देशी और विदेशी साथी को वहीं पर खत्म कर सकती थी, किन्तु अंगरेजों ने हार मान कर दया की प्रार्थना की। १३ जनवरी को अंगरेजों का एक दूत नन्धि के लिए मराठों के पास पहुंचा । मराठों ने शरणागत शत्रु को छोड़ दिया। दोनों पक्षों में फिर एक सन्धि हो गई जिसमें अंगरेजों ने वादा किया कि :- (१) राघोबा को फौरन पूना दरबार के हवाले कर दिया जावेगा। (२) भडोच, सूरत और मराठों के जितने और इलाको पर कम्पनी ने अपना अधिकार जमा रक्खा है वे सब फ़ौरन पेशवा दरवार को वापस दे दिए जावेगे। (३) जो अंगरेज़ो सेना बंगाल से पा रही है उसे वापस लौटाने के लिए अंगरेज अफसर उस सेना के पास स्पष्ट सन्देशा भेज दंगे और यह सन्देशा पूना दरवार के एक वकील को मारफत भेजा जावेगा।