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भारत में अंगरेज़ी राज

२८४ भारन में अंगरजी राज इन तीनों में इस सम्बन्ध में जो एत्र व्यवहार हुआ उससे इतिहास लेखक मिल ने डाइरेक्टरों के कपट और लालच कल्पनी के डाइरेक्टरों । को अच्छी तरह प्रकट किया है। डाइरेक्टरों का कपट ने इन पत्रों में स्पष्ट लिखा कि बसई जैसे महत्वपूर्ण इलाके को छोड़ देना मूर्खता है। अपनी मद्रास कौन्सिल को युद्ध के लिए तैयार रहने और समय पड़ने पर वारन हेस्टिंग्स की मदद करने की आज्ञा दी। भारत के तमाम अंगरेज अधिकारियों को साफ़ हिदायत की कि आप लोग राघोबा का साथ न छोड़े और जिस बहाने हो सके, पुरन्धर की सन्धि को तोड़ कर या मराठों को उकसाकर उनकी ओर से तुड़वाकर, राघोबा को फिर सामने कर दें, इत्यादि। वारन हेस्टिंग्स और उसके तमाम मातहतों के लिए ये हिदायते काफ़ी थीं। पुरन्धर की सन्धि हो चुकी थी ! उस पर बाज़ाब्ता कम्पनी की . मोहर लग चुकी थी। फिर भी अंगरेजों ने उस सन्धि को तोड़न सन्धि की शतों को पूरा करने में टाल मटोल की कोशिश शुरू की। न उन्होंने राघोबा का साथ छोड़ा और न बसई का किला ख़ाली किया। करनल अपटन सन्धि करके कलकत्ते लौट गया और जब उस सन्धि के अनुसार कम्पनी के एक वकील को पूना भेजने का मौका आया तो फिर वही प्रसिद्ध अंगरेज़ दूत मॉस्टिन बम्बई से पूना भेजा गया। पेशवा दरबार के नीतिज्ञ मॉस्टिन और उसके कृत्यों से अच्छी