पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/५५३

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पहला मराठा युध्द

पहला मराठा युद्ध २७७ की जड़ और अंगरजा , की विधवा स्त्री के, जो अपने पति की हत्या के समय गर्भवती थी, एक पुत्र हुआ। पूना दरवार ने एक मत से इस पूना में दूसरे पेशवा शिवा बालक के पेशवा नियुक्त होने का एलान कर की नियुक्ति " दिया।प्रजा ने मसनद नशीली की खुशियाँ मनाई। किन्तु अंगरेजों का हित राघोवा ही को पेशवा बनाने में था। उन्होंने राघोबा को अपने पास सूरत बुलवा पहले मराठा युद्ध लिया। सूरत में ६ मार्च सन् १७७५ को राघोबा और अंगरेजों में एक सन्धि हो गई, जिसमे राघोबा ने साष्टी, बसई और सूरत प्रान्त का एक भाग कम्पनी के नाम लिख दिया और बम्बई की अंगरेज कौन्सिल ने इसके बदले में राघोबा को कम्पनी की सेना सहित पूना भेजने और पेशवा की मसमद पर बैठाने का वादा किया। यह नाजायज़ सन्धि ही पहले मराठा युद्ध की जड़ थी। करनल कीर्टिना के अधीन कम्पनी की सेना और राघोबा की लेना दोनों मिल कर राघोवा को जबरदस्ती पेशवा की मसनद पर बैठाने की गरज से पूना पहली हार की ओर बढ़ी। उधर पूना दरवार ने सेनापति हरिपन्त फड़के के अधीन एक सेना राघोबा की बगावत को दमन करने के लिए गुजरात की ओर रवाना कर दी। १८ मई सन् १७७५ को पारस नामक स्थान पर दोनों ओर की सेनाओं में घमासान संग्राम हुआ, जिसमें राघोवा और उसके मददगारों की हार हुई । अंगरेजों की बहुत सी सेना और अनेक अंगरेज़ अफ़सर मारे गए। 1