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भारत में अंगरेज़ी राज

भारत में अंगरेजी पत्र एलान कर दिया। मॉस्टिन और उसके साथियों ने राघोबा को पेशवा बनने में पूरी सहायता दो । पेशवा विद्रोही राघोबा नारायनराव के स्वभाव को प्रशंसा करते हुए और अंगरेज ग्रॉन्ट अफ अन्त में लिखता है कि सिवाय उसके शत्रुओं के बाकी सब उससे प्रेम करते थे। किन्तु अंगरेजो ने अब नारायनराव की खब' बुराई ओर राघोबा की तारीफ करनी शुरू कर दी। पूना के अधिकांश दरवारी और वहाँ की प्रजा सब राघोबा के विरुद्ध थे। राघोबा हर तरह से मॉस्टिन के हाथों की कठपुतली था। मॉस्टिन ने अब उसे समझा बुझाकर निज़ाम और हैदरअली के साथ उसका वाजाता युद्ध छिड़वा दिया और इस युद्ध के लिए उसे सेना सहित पूना से रवाना कर दिया। किन्तु इस लड़ाई में राघोबा को सिवाय कष्ट और अपमान के और कुछ न मिला। नाना फड़नवीस और उसके साथियों ने, जो अच्छी तरह देख रहे थे कि राघोबा विदेशियों के हाथों में खेल कर मराठा साम्राज्य की जड़े खोखली कर रहा है, राघोबा की इस गैर मौजूदगी में अपना बल और बढ़ा लिया, यहाँ तक कि राघोबा को पूना लौटने का साहस न हो सका। वह जान बचा कर गुजरात की ओर भाग गया। इसी बीच पूना में १८ अप्रैल लन् १७७४ को पेशवा नारायनराव all tutus .ncil, lord him 'Crant Duff History of