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भारत में अंगरेज़ी राज

२७४ मारत में अंगरेजो राज से भी उसका चरित्र उसके पूर्वाधिकारियों से कहीं अधिक प्रशंसा और आदर के योग्य था। पेशवा माधोराव की अचानक मृत्यु के सम्बन्ध में कम्पनी के दूत मॉस्टिन पर सन्देह होना, खास कर मॉस्टिन की अन्य करतूतो को देखते हुए, बिलकुल स्वाभाविक है; किन्तु इन गुप्त पापों का ठीक भेद इतने समय के बाद खुल सकना अत्यन्त कठिन है। माधोराक के कोई बच्चा न था। मरने से पहले उसने अपने भाई नारायनराव को पेशवा की मसनद के लिए नियुक्त कर दिया और अपने चचा राघोबा से प्रार्थना को कि श्राप नारायनराव की रक्षा और सहायता कीजियेगा। राघोबा के लिए अपनी महत्वाकांक्षा को पूरा करने और मॉस्टिन के लिए राघोबा द्वारा अपने मालिको की इच्छा पेशवा नारायनराव को सफल बनाने, दोनों का अब खासा सुन्दर की हत्या ". अवसर था। ३० अगस्त सन् १७७३ को राम्रोश ने अपने भतीजे नारायनराव पेशवा को मरवा डाला। मॉल्टिन ने बड़े उल्लास के साथ बम्बई की अंगरेज़ कौन्सिल को इस घटना की सूचना दी। नारायनराव की हत्या का भेद उसी समय पूरी तरह खुल गया। जिन श्रादमियों ने नारायनराव को मारा वे राघोबा के श्रादमी थे। पूछ ताछ होने पर राघोवा ने बयान किया कि जो मराठी पत्र मैंने

  • Grant Durl's History of the Markaakes, p 352