२७२ भारत में अंगरेजी राज जो राघोबा को स्वार्थपरता और अंगरेजों की चालो दोनों को खूब समझता था। यह नीतिज्ञ सुप्रसिद्ध नाना फड़नवील था । सन् १८५० में नाना की मृत्यु के बरसों बाद उसकी योग्यता को स्वीकार करते हुए जे० सलीवन नामक अंगरेज ने करनल निम्स के नाम एक पत्र में लिखा कि-"नाना फड़नवीस और उस जैसे आदमी हमें दीजिये । उस्ल योग्यता के भारतवासियों के मुकाबले में भारत के शासकों की हैसियत से हम अत्यन्त तुच्छ और बौने मालूम इतिहास लेखक टॉरेन्स अंगरेजों की ओर नाना फड़नवीस की नीति के विषय में लिखता है :- नाना फडनवीस "नाना फडनवीस अगरेजों के प्रति आदर प्रकट और अंगरेज़ करता था, उनकी तारीफ करता था, किन्तु उनके राज- नैतिक आलिङ्गन से पीछे हटता था और चाहे कोई कैसी भी आपत्ति क्यों न सामने खड़ी हो, वह अंगरेज़ों से स्थायी सनिक सहायता स्वीकार करने से सदा इनकार करता रहा ।। नाना को यह नीति ही उस समय के भारतीय शासकों के लिए एक मात्र कुशल नीति हो सकती थी। इसीलिए राघोबा और अंगरेजों के बीच जो सन्धि हो चुकी थी, नाना फड़नवोस उसके खिलाफ था। पेशवा माधोराव भी नाना के प्रभाव में था। ऐसी
- " trive us Nana Fadnavis and suth like Whut poor Pigmles we are
as Indian Ariministratons when comparced with uatives of that stamp! || -- J Sullrvan's letter to colonel Briggs 1850 + Tornens' Emparen Asxa, p 221