पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/५३९

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पहला मराठा युध्द

पहला मराठा युद्ध २६६ हो डाइरेक्टरों और गवरनर जनरल के पत्रों से बिलकुल हाफ़ हैं- (१) अंगरेज़ जानते थे कि यदि दश्विन की नीन मुख्य शक्तियाँ निज़ाम, हैदरअली और पेशवा आपस में मिल गई तो दक्खिनो भारत से अंगरेज़ों के अस्तित्व को आस्मानी से मिटा देंगी, इसलिए जिस तरह हो इन तीनों को एक दूसरे से लड़ाए रखना ज़रूरी था। (२) इनमें मराठे सब से अधिक महत्वाकांक्षी और साम्राज्य- प्रेमी थे। इसलिए उन्हें घरेलू झगड़ों में इस तरह फंसाए रखना ज़रूरी था कि जिल बंगाल और उत्तरीय भारत के अन्दर अंगरेजों के बढ़ते हुए प्रभाव में हस्तक्षेप करने का उन्हें अवकाश न मिल सके। (३) भारत के पच्छिमी तट पर आहिस्ता आहिस्ता अपने पैर फैलाने के लिए साष्टी का टापू, वसई का इलाका और कुछ थोड़ा सा गुजरात प्रान्त का भाग कम्पनी को अपने अधीन कर लेना ज़रूरी था। कम्पनी के डाइरेक्टरों ने बम्बई के गवरनर और वहाँ की कौंसिल के नाम १८ मार्च सन् १७६= के एक साष्टी और बसई पत्र में लिखा कि-"हम आप से जितने जोर पर अंगरेजों के दांत के साथ हो सकता है उतने ज़ोर के साथ सिफारिश करते हैं कि आपको जब जब मौका मिल सके, आप इन स्थानों (साटी और बसई ) को प्राप्त करने के