२६८ मारत में अगरजो राज मिलकर मराठों पर हमला करतीं तो यह देखकर उन्हें बहुत बड़ा सन्तोष होता "* इसी इच्छा को पूरा करने के लिए अंगरेजों ने राघोबा को बहकाना शुरू किया कि दक्खिन का सूबेदार निज़ामुलमुल्क मराठौ पर हमला करने वाला है। राघोबा की अदूरदर्शिता सं पेशवा माधोराव और बम्बई के अंगारेज गवरनर इन दोनों के बीच यह सन्धि हो गई कि यदि निज़ाम मराठों पर हमला करे, तो अंगरेज सेना और सामान से मराठों की मदद करेंगे और इस मदद के बदले में पच्छिमी तट पर साष्टी ( Salsette ) का टापू और बसई ( Bassein ) का किला दोनों पेशवा को ओर से अंगरेजों को दे दिए जावेंगे। न निज़ाम ने मराठों पर हमला किया, न मराठों को अंगरेजों की मदद की ज़रूरत हुई, और न साष्टी और वसई उस समय अंगरेजों के हवाले किए गए, फिर भी इस सन्धि के समय से ही अंगरेजों की पेशवा दरवार के अन्दर पहुँच हो गई। उन्हें मराठों की भीतरी कमजोरियों का पता लगने लगा और मराठा साम्राज्य के अन्दर अपनी साजिशों के फैलाने का मौका मिलने लगा। दक्खिनी भारत के सम्बन्ध में इस समय कम्पनी की नीति के तीन मुख्य पहलू थे, दूसरे शब्दों में उनकी तीन मुख्य इच्छाएँ थीं, 4 ] he Court of Dires tors, Here des.ious of Self the Irrhatta Filerkittn thrur progress, and nould have beheld combinations of the othe nitive powers against them witli bumdant uatistaction "-History of th Marhattas by rrant Puft
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भारत में अंगरेज़ी राज