समय से ही धीरे धीरे गायकवाड, मोसला, होलकर और सींधिया एक एक कर पेशवा की अधीनता सं अपने तई स्वाधीन्द्र समझने लगे। पानीपत के कुछ सप्ताह बाद बालाजी बाजीराव की मृत्यु हो गई। बालाजी का नावालिग बेटा माधोराव पेशवा की मसनद पर बैठा और माधोराव का चाचा रघुनाथ राव, जिसे इतिहास में अधिकतर राघोबा कहा जाता है और जिसकी सेना ने अफगानों से पंजाव विजय किया था, अपने भतीजे पेशवा का संरक्षक नियुक्त हुआ। राघोबा अत्यन्त वीर, किन्तु अदूरदर्शी था। वह महत्वाकांक्षी भी था और महत्वाकांक्षा ने उसकी नीतिज्ञता पर और भी परदा डाल दिया था। इसलिए जब अंगरेजो ने अपने मतलब के लिए मराठी की सत्ता को नष्ट करने का विचार किश, तो राघोबा आसानी से उनके हाथों में खेल पाया। कम्पनी की सत्ता उन दिनों भारत में बढ़ती जा रही थी। मराठों जैसी प्रबल भारतीय शक्ति के अस्तित्व को दक्खिन में कम्पनी अंगरेज अपनी उन्नति के लिए हितकर न समझ की नीति सकते थे। एक न एक दिन इन दोनो शक्तियों का एक दूसरे से टकरा जाना अनिवार्य था। प्रसिद्ध इतिहास लेखक प्राण्ट डफ लिखता है कि उस समय- "कम्पनी के डाइरेक्टर इस बात के लिए इच्छुक थे कि मराठों की हत्ती हुई सत्ता को किसी तरह धक्का पहुँचे, और यदि देश की दूसरी शक्तियां
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पहला मराठा युध्द