पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/५२१

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
२५३
वारन हेस्टिंग्स

धारन हेस्टिंग्ल २५३ वह फिर वारन हेस्टिंग्स का दोस्त साबित हुआ !x x x अपनी पालकी मे बैठकर गैर ईसाई कहारों की डॉक लगवाकर उनके कन्धों पर सर एलाइजाह इम्पे कलकत्ते से लखनऊ रवाना हुअा; x x x एक माननीय बाइसराय की आज्ञा पर उस वाइसराय को डकैती में मदद देने के लिए ईसाई चीफ़ जस्टिस को पूरी तेजी के साथ अपने कन्धों पर ले जाने में गैर-ईसाई हिन्दुओं का उपयोग किया गया । रूहानी अन्धकार में डूबी हुई जनता को यूरोपियन व्यवहार और यूरोपियन सदाचार की श्रेष्टना का इससे बढ़कर और क्या सुदूर मिल सकता था ? अवध की राजधानी में पहुँच कर चीफ जस्टिस ने बहुत से हलफनामे लिए, जिनमें बेगमों पर यह इलज़ाम लगाया गया कि वे चेतसिह के न्याय्य मालिकों यानी कम्पनी के विरुद्ध उस रज़ी साज़िश में चेतसिह से मिली हुई थीं। सर एलाइजाह ने न हलफनामे पढे, न किसी से पढवाकर सुने । वे एक ऐसी ज़बान में थे जिले इम्पे समझता तक न था और न उसके पास इतना समय था कि किसी दूसरे से तरजुमा करवाने का इन्तज़ार करता । एशिया के अन्दर इंगलिस्तान के प्रधान न्यायाधीश की हैसियत से उसने हलफनामे लिए और अपने उच्च अधिकार के इस घृणित दुरुपयोग' को पूरा कर फिर पालकी में बैठ कलकत्ते लौट आया | xxx फ़ैज़ाबाद के महलों को अंगरेज़ी सेना ने घेर लिया । बेगों से कहा गया कि आप कैदी हैं और अपने तमाम ज़बर, सोना, चाँदो और जवाहरात दे दीजिए । जब बेगमों ने इनकार किया तो महल की शरीफ औरतों को भूखों मारा गया और उनके नौकरों को बडी बडी यातनाएँ दी गई । बेगमे जब इन लोगों के रोने चीखने की आवाज़ों को न सह सकी तो उन्होंने पिटारों पर पिटारे और खजानों पर खजाने देना शुरू किया, यहाँ तक कि कुल लूट की कीमत का