पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/५२

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
२४
पुस्तक प्रवेश

पुस्तक प्रदेश रहता था, उस ऊदबिलाव की हालत में और उस किसान की हालत मे ज़्यादा फरक न था। सड़कों पर डाकू फिरते रहते थे, नदियों पर समुद्री लुटेरे और लोगों के कपड़ों और बिस्तरों में जुएँ । आम तौर पर लोगों की खुराक होती थी-मटर, उड़द, अड़े और दरख्तों की छालें । कोई ऐसा धन्धा न था, न कोई तिजारत थी जिससे बारिश न होने की सूरत में किसान दुष्काल से बच सके । मौसम की सख्ती से बचने का मनुष्यों के पास बिल्कुल कोई उपाय न था । श्रावादी बहुत कम थी, और महा- मारी और अन्य के अभाव से और घटती रहती थी । शहर के लोगों की हालत भी गाँव के लोगों से कुछ अच्छी न थी। शहर बालों का बिछौना भुस का एक थैला होता था और तकिये की जगह लकड़ी का एक गोल टुकड़ा । जो शहर वाले खुशहाल होते थे वे चमड़े के कपड़े पहनते थे, जो गरीब होने थे वे अपने हाथ और पैरों पर पवाल की पूलियाँ लपेट कर अपने को सरदी से बचाते थे।xxx जिन शहरों में शीशे को या नैल पत्र की कोई खिड़की तक न होती थी, वहाँ किसी तरह के कारीगर के लिए कहाँ गुञ्जाइश थी । कहीं कोई कारखाना न था, जिसमें कोई कारीगर आराम से बैठ सके । ग़रीबों के लिए कोई वैद्य न था।xxx सफ़ाई का कही कोई इन्तज़ाम था ही नहीं।" आगे चल कर उस समय के यूरोप के सदाचार को बयान करते लिखता है- "जिस तेजी के साथ गरमी की बीमारी उन दिनों तमाम