वारन हेस्टिंग्स २४६ अफसरों का अंगरेज़ होना और कम्पनी का उन पर अधिकार रहना ज़रूरी था। दो साल बाद महाराजा चेतसिंह को हुकुम मिला कि इसी प्रकार एक पलटन सवारों की भी अपने यहाँ रक्खो। इस वार उसने इनकार कर दिया। वारन हेस्टिग्स केवल बहाना ढूंढ़ रहा था। उसने फ़ौरन सेना सहित बनारस पर चढ़ाई की। चेतसिंह ने आगे बढ़ कर बक्सर में वारन हेस्टिंग्स से भेंट की और अपनो अधीनता प्रकट करने के लिए अपनी पगड़ी उतार कर वारन हेस्टिंग्स के पैरों पर रख दी। फिर भी वारन हेस्टिंग्स न रुका । उसने सोधे बनारस पहुँच कर चेतसिंह के महल को घेर लिया और रेजिडेन्ट को आज्ञा दी कि चेतसिंह को कैद कर लिया जावे। बनारस की प्रजा इस अंधेर को देख कर भड़क उठी। वहाँ के लोगों में अभी जान बाकी थी। वे कम्पनी की सेना पर टूट पड़े। तुरन्त तमाम अंगरेज़ सिपाही एक एक कर कत्ल कर डाले गए। बदला लेने के लिए अब और अधिक सेना भेजी गई। खूब घमासान युद्ध हुआ। रात को चेतसिंह के कुछ नौकरों ने जब यह देखा कि बनारस का किला शत्रु के हाथों में पड़ने वाला है तो अपनी पगड़ियों की रस्सी बना कर उसके ज़रिए महाराजा चेतसिंह को महल की एक खिड़की से नीचे उतार दिया। गंगा के उस पार रामनगर के किले में चेतसिंह का मुख्य खजाना था। चेतसिह अपनी माता और
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वारन हेस्टिंग्स