२३६ भारत में अंगरेजी राज अन्न के काल और महामारी में घनिष्ट सम्बन्ध है। इसी समय बंगाल भर में वेचक की महामारी फैली, जिससे न बच्चा बच मका और न बूढ़ा, न पुरुष बच सके और न स्त्री, किन्तु अंगरेज़ों ने न चावल के व्यापार का ठेका अपने हाथों से छोड़ा और न मुंह माँगी कोमतों में कमी की। कम्पनी के डाइरेक्टरों ने १८ दिसम्बर सन् १७७१ के पत्र में स्पष्ट शब्दो मं स्वीकार किया है कि इस अवसर पर कम्पनी के मुलाजिमों ने चावल और दूसरे अनाज के व्यापार पर अपना अनन्य अधिकार जमा रक्खा था, जिसके सबव से देश भर में चारों ओर अन्न का अभाव दिखाई देता था। बंगाल में ईस्ट इण्डिया कम्पनी की सत्ता का इस प्रकार प्रारम्भ हुआ । कलकत्ते के विक्टोरिया मेमोरियल में १७वी खून के प्रॉस सदी के शुरू का बना हुआ संगमूसा का वह सुन्दर तख़्त अभी तक रक्खा है, जिस पर मुर्शिदाबाद के सूबेदार बैठा करते थे। इसी तख्त पर बैठकर अलीवर्दी खाँ और सिराजुद्दौला ने वंगाल पर शासन किया। इसी तख्त पर प्लासी के संग्राम के बाद क्लाइव ने मीर जाफ़र को बैठाकर तीनों प्रान्तों का सूबा कह कर सलाम किया। इसी तख्त पर बैठकर मीर कासिम ने बंगाल की स्वाधीनता की रक्षा के अन्तिम प्रयत्न किए। विक्टोरिया मेमोरियल के सूची पत्र में पृष्ठ ४० पर लिखा है कि अभी तक खून के से रंग की लाल बूंदें इस तख्त के कई हिस्सों
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भारत में अंगरेज़ी राज