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भारत में अंगरेज़ी राज

२३४ भारत में अंगरेजो राज 'सीत्ररुल-मुताख़रीन' का वथान है :-- "इस समय यह देखा गया कि बंगाल मे रुपया दरिद्रता, दुष्काल कम होता जा रह था ! xxx हर साल बेशुमार और महामारी नकदी लाद कर इंगलिस्तान भेजी जाती थी। यह एक मामूली बात थी कि हर साल पाँच छै या इससे भी अधिक अंगरेज बड़ी बडी पूजियों साथ लेकर अपने वतन को लौटते हुए दिखाई देते थे। इस लिए लाखों के ऊपर लाखों चिन चिन कर इस देश से निकल गए । x xx सरकारी फौज, ज़मींदारों की फौजे, उम्मेदवार और उनके नौकर सब मिलाकर कम से कम ७० था ८० हज़ार हिन्दोस्तानी सवार पहले बंगाल और बिहार के मैदानों में भरे रहते थे और अब बगाल के अन्दर एक सवार ऐसा ही अलभ्य है, जैसा दुनिया में 'उनका पक्षी । हर जिले में पैदावार कम होती जा रही है और असख्य जनता दुष्काल और महामारी से मिटती जा रही है, जिससे देश बराबर उजडता चला जा रहा है। नतीजा यह है कि बेहद ज़मीन बिना जोती बोई पड़ी हुई है और जो हम लोगों ने जोती है, उसको भी पैदावार की निकासी के लिए हमें बाज़ार नहीं मिल सकता । यह बात यहां तक सच है कि यदि अंगरेज़ हर साल बंगाल और बिहार भर से शोरा, अनीम, कच्चा रेशम और सफेद कपड़े के थान न खरीदते होते तो शायद बहुत से हार्थों में एक रुपया या अशरनी वैसी ही अलभ्य हो जाती, जैसी पारस पथरी । और वह समय आने वाला है, जब बहुत से नए पैदा हुए आदमी यह न समझ सकेंगे कि लोग पहले रुपया किस चीज़ को कहा करते थे और अशरफ़ी शब्द के क्या अर्थ होते थे।"*

  • Seurnt-tantakhtran, volu, P 32, Calcutta. Rt THIL