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भारत में अंगरेज़ी राज

२२, भारत में अगरेजी राज लाइव के इसी पत्र के उत्तर में डाइरेक्टरों ने मई सन् १७६६ में क्लाइव को लिखा :- हम समझते हैं कि देश के आन्तरिक व्यापार में इन अंगरेजों ने व्यक्तिगत हैसियत से जो बड़ी बड़ी पूंजियाँ कमाई हैं के इस तरह के ज़बर- दस्त अन्यायों और अत्याचारों द्वारा हासिल की गई हैं, जिनसे बढ़ कर अन्याय और अत्याचार कभी किसी ज़माने और किसी देश में भी देखने या सुनने में न आए होंगे।"* ऊपर का लम्बा पत्र लॉर्ड क्लाइव का लिखा हुआ है, जो स्वयं हद दर्जे का लालची और रिशवतखोर था, जो अपने इस दुसरी बार के भारत श्राने से भी लाखों रुपए नाजायज तरीकों से कमाकर विलायत ले गया और जो अपनी स्वार्थसिद्धि के लिए न्याय अन्याय या पाप पुण्य का जरा भी विचार न रखता था। इसी पत्र में एक जगह उसने "भारत के बाशिन्दों" को "अंगरेजों के कदरती ___ the rage of luntary ud corrupt1011 The hourres of trianny and oppress1011, which have been opened by the European cut nts acting under the authority of the Company's servants and the numberless black agents and sub-gents actangolso under them, wali I feal, he at lasting reproach to the English malne 11 this rountry Ambition, rut cEs, and lucury, live, I find, 111t1oduced a new ssstern of politics, at the st trere expense of English honor, of the Companv's fanth and even of Common justice arl_hunnality '-- Clive s lefter to the Directors dated 30th heptemhel, 1765

we think the vast fortunes cquired in the inland trade have beers obtained by a scene of the most tyanumr and oppressive conduct trnt ever was known in any age or country"-- Letter from the Court ot Directois to Lord Cine, dnted My, 1766