२२६ भारत में अंगरजी राज्ड और अन्य स्थानों में निडर होकर लूट के लिए निकलते थे।" और "बार बार अपनी दूकान छोड़ कर दल बना कर इधर उधर डाके डालने जाते थे।" "उन दिनों कम्पनी के हर अंगरेज़ मुलाज़िम का काम केवल यह था कि जितनी जल्दी हो सके, भारतवासियों से इस या बीस लाख रुपए लूट खसोट कर इंगलिस्तान लौट जावे।"* और आगे चल कर क्लाइव अपने उस ख़त में लिखता है :-- "xx x दौलत व्यवस्था की शत्रु है ही। इसी दौलत की वजह से हमारी सेना प्रतिदिन बरबाद होती जा रही हैं x x x जब अंगरेजी फौज किसी शहर पर कब्जा करती है तो उसके बाद सारा लूट का माल, दण्ड का रुपया और सामान बे रोक टोक फ़ौज के लोग आपस में बाँट लेते हैं। x xx मैं आपको विश्वास दिला सकता हूँ कि बनारस में भी ऐसा ही हुआ । इससे भी अधिक विचित्र बात यह है कि बनारस की लूट से कई साल पहले आपको ये स्पष्ट प्राज्ञाएँ आ चुकी थीं कि लूट के तमाम माल में से प्राधा कम्पनी को मिलना चाहिए, फिर भी उस समय के सवरनर और कौन्सिल ने बजाय आपको श्राज्ञा के अनुसार काम करने के xxx तमाम माल और रुपया विजयी शौज के सैनिकों में बाट दिया x x x । ___xxx अय्याशी और रिशवतखोरी का जोर हैxxx"
- • The rzzras inade with impulity in Bengal and elsex here . .
the counting-House vis desented continually for narauding pt dition During this period the business of a strrant of the Company we Simply to wring out of the natirer a hundred or two lundied tliousand poune as speedily as possible. that he meht return home "-Torren Empire trn ristu, Pp 82, 83