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भारत में अंगरेज़ी राज

२२० भारत में अंगरेजी राज रह सकना सामुमकिन है।"* इसके अलावा कोई नीच से नीच काम ऐलान हो सकता था जिसे अपनी इष्टसिद्धि के लिए लाइव करने को तैयार न हो जाता ! नजमुदौला की मृत्यु से एक लास कम्पनी को और हुआ। उन्होंने 'दीवानी मिलने पर नवाब के सैनिक खर्च के लिए ५५ लाख रुपए सालाना देश की आमदनी में ले देने का बादा किया था। अब उसे घटा कर ४१ लाख ८१ हजार कर दिया। __नजमुद्दौला की मृत्यु के साथ साथ मुर्शिदाबाद के नवाबों की सत्ता की रही सही छाया भी बंगाल के इतिहास से लोप हो जाती है। यद्यपि नाम या उपचार के लिए नजमुद्दौला के बाद उसका एक छोटा भाई मसनद पर बैठा दिया गया और यह दोअमली वारन हेस्टिंग्स के समय तक जारी रही, किन्तु वास्तव में बंगाल का सूबे- दार अब केवल एक 'शून्य' रह गया, तीनों प्रान्तों का शासन अंगरेजों के नियुक्त किए हुए तीन 'नायवों के हाथों में श्रागया और 'अंगरेज सरकार का ही बंगाल भर में जहर दिखाई देने लगा। उस समय से बंगाल का इतिहास केवल अंगरेज गवरनरौ के कारनामों का इतिहास रह जाता है। ईस्ट इण्डिया कम्पनी के तमाम छोटे बड़े अंगरेज़ मुलाजिमों में धन का लोभ और दुराचार दोनों अब इस भयंकर लूट और दर्जे फैल गए थे कि नेकी, वदी या न्याय अन्याय दोअमली का विचार तो दूर रहा, अपने व्यक्तिगत स्वार्थ

  • “ It is impossible, therefore, to trust hum trith power, and be sale'---

Clive's letter to the Court of Directors, dated 30th September, 1765